कहने छापने की मिली इंटरनेटीय आजादी से जन्मी ब्लॉगिंग और इससे आगे हिन्दी ब्लॉगिंग मन माफिक तरीके से विकास कर रही थी कि अचानक ब्लॉगिंग विधा का विकास यानी इसका सहज रूप से बिना लाग लपेट के सच सच कहना सरकार के नुमाइंदों को रास नहीं आया। फिर इसी ब्लॉगिंग के चलते, फायदे जो हुए सो हुए परंतु इससे देशों में क्रांति भी आई, सत्ता भी पलटी तो सत्तानशीनों में सुगबुगाहट शुरू हो गई। ऊपर से जो सुगबुगाहट दिखलाई दे रही थी। दरअसल वो भीतर से जापान का विनाशकारी भूकंप था। उससे बचाव के लिए सरकार ने ब्लॉगिंग पर अंकुश कसने की ख्वाहिश जाहिर कर दी। कहा तो यह गया है कि इसे सबसे सलाह करके बनाया गया है और इसमें अभी परिवर्तन किए जाने हैं। लेकिन इस बहानेबाजी से सरकार की मंशा प्रकट नहीं होगी, इस मुगालते में जी रहे हैं सरकार के नुमाइंदे।
दरअसल, यह कहना कि एक बिल्ली खिसियाए बिना ही खंबे को नोचने लग गई है, तो गलत न होगा। अब कौन बिल्ली है और कहां पर खंबा है, इसे साफ शब्दों में कहता हूं। जी हां, ब्लॉगिंग की दुनिया में यही होने जा रहा है। ब्लॉगिंग की यह दुनिया भारतीय है। जहां पर संपूर्ण लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते न सरकार थकती है और न सरकार के नुमाइंदे, पर भीतर ही भीतर पूरी तरह खौफजदा हैं। ऐसा भी नहीं है कि होली से ठीक पहले इसकी भनक लगी है तो इसे मक्खी की भनभन मानें।
सरकार बिना बीमारी के सिर्फ अंदेशे के बूते ही चिकित्सा करने को तैयार हो गई है। पोस्टों और टिप्पणियों में हम चाहे कितना ही शोर मचा लें, आपस में एक दूसरे के सिर फोड़ डालें, बिना किसी बात के एक दूसरे की टांगे खींचने या गला भींचने पर उतारू हो जायें। जरूरत न पड़ने पर भी टांग तोड़ डालने पर तैयार हो जाएं और शब्दों में घमासान ऐसा मचा दें कि विश्वयुद्ध का सा आभास होने लगे। तेरी टिप्पणियां मेरी पोस्ट मिलकर खूब गजब ढाएंगी, पर रेल पटरियों पर जाकर कब्जा करना जाटों के बस का ही है।
जहां जनता के नुमाइंदे सरकार से जन-कल्याण के लिए राशि लेकर उस पैसे का सदुपयोग वोटर को खरीदने में कर सकते हैं। सरकार की बेबसी पीएम भी स्वीकार चुके हैं। स्वीकारने का तरीका और माहौल दूसरा था। पर सब जगह मौसम होलियाना नहीं है। मालूम नहीं सरकार की आंखें चौंधिया रही हैं या बुद्धि भ्रष्ट हो गई है अथवा सरकार में बैठे दुष्टों को पता नहीं कि क्यों वे रुष्ट हैं जो ब्लॉगरों को कष्ट बांटने पर उतारूं हैं।
यकीन मानिए, ब्लॉगिंग पर अंकुश का शिकंजा असलियत बनने की तैयारी में है। ब्लॉगिंग मीडिया पांचवां खंबा है, इससे किसी को एतराज नहीं है और सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगाने की बात करके इसके मजबूत खंबत्व को स्वीकारा ही है और वो बिल्ली की उस भूमिका में आ गई है जिसमें बिल्ली को लगता है कि उसके नाखून जरूर ही इस खंबे को ढहाने में सफल हो जायेंगे। जब बिल्ली सफल हो सकती तो दूसरे जानवर जैसे रंगा सियार, धूर्त लोमड़ी, काना बंदर और गिलहरी-चींटी के पर निकलते भी जरूर दिखलाई देंगे।
सरकार ने इंडियन ब्लॉगर्स कंट्रोल एक्ट के जरिए गैर व्यावहारिक लोगों द्वारा जो बदलाव सुझाए हैं, वे दूषित मानसिकता को दर्शाते हैं। जरूरत है कि इसमें ब्लॉगों से प्रतिनिधित्व लिया जाये लेकिन कुछ भी कर लिया जाये, अब भविष्य में इसके दुर्दिन आते दिखलाई दे रहे हैं। लगाम लगाने से जिस प्रकार कार्य करने का जोखिम बढ़ता है, इसी प्रकार उत्साह में भी बढ़ोतरी होती है। उसे करने वाले विशेष सुविधाओं और गौर करने के हकदार बन जाते हैं। जैसे सब जानते हैं कि आतंक फैलाना जुर्म है फिर भी आतंकी मिलते हैं, उन पर खूब फोकस किया जाता है। इसलिए प्रतिबंध लगाने से ब्लॉगरों की वो शिकायत तो दूर हो ही जायेगी कि उन्हें फोकस में नहीं रखा जा रहा है। वैसे यह भी विचाराधीन है कि सरकार कुछ नामचीन ब्लॉगरों को संसद की सदस्यता या ऐसा ही कोई प्रलोभन देने वाली है ताकि वे सरकार के प्रतिबंधों का विरोध न करें और इस कार्य में सहयोगी की भूमिका निभायें।
फिर आप देखिए, अगर लाल बत्ती क्रास करना मना है या सिगरेट पीना मना है तो जो आनंद कानून तोड़ने में मिलता है वो आनंद सामान्य ब्लॉगिंग में नहीं मिल सकता है। आनंद चाहिये तो कानून तोड़ना ही होगा। प्रतिबंध लगाने के बाद सिखाने वालों की डिमांड बढ़ सकती है। किसी क्षेत्र में विकास के लिए काले धन की संभावनाएं उपयोगी खाद बनती हैं। फिल्मों को ही लीजिए, क्रिकेट में देखिए – उन दिनों की कल्पना कीजिए जब पोस्ट या टिप्पणी पर सट्टा लगाया जाया करेगा तो ब्लॉगिंग एक नहीं दो नंबर का धंधा बन जाएगी और वो खूब चल निकलेगा, और किसी के रोके नहीं रूकेगा। मतलब दो नंबर का जुड़ाव इस पांचवें खंबे के साथ विकास के लिए निहायत ही जरूरी है।
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ब्लॉगिंग पर अंकुश नहीं लगनी चाहिए
ReplyDeleteइसका सदुपयोग होना चाहिए
अगर ब्लागिंग पर अंकुश लगाने की तैयारी है ,तो इसके खिलाफ अन्ना हजारे की तरह आमरण अनशन की तैयारी करनी होगी . क्या महान ब्लागरों में से कोई अन्ना हजारे बनकर सामने आएगा ?
ReplyDeleteऐसे दिमाग से पैदल सरकार और इसमें बैठे लोगों को अब पागल खाने भेजने की तयारी शुरू हो चुकी है अन्ना हजारे जी जैसे डॉक्टर के नेतृत्व में...
ReplyDeleteसर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ReplyDeleteदेखना है जोर कितना बाज़ुए कातिल में है...
इस पाँचवें मीडिया पर सेंसर या अंकश लगाना सरकार के लिए नुकसानदायक ही होगा। जैसा कि इमरजेंसी में इन्दिरा जी के लिए हुआ था। सरकार जनता को गुमराह करके ही राज कर पाती है। प्रजातंत्र में विचारों को कुचल कर नहीं।
ReplyDeleteइसके विपरीत नरेन्द्र मोदी जी का उदाहरण लें, वे ईमेल ग्रूप, ब्लागिंग तथा फेसबुक आदि के माध्यमों के सहारे आम जनता से जुड़े रहने, जनप्रिय बनने के भरपूर प्रयास करते हैं।
-- हरिराम