Monday, April 4, 2011

सबको प्यारा है कॉनफिल्कट जोन

पीवी राजगोपाल

आज जैसे-जैसे जमीन की कीमत बढ़ती जा रही है, उसकी छीन झपट भी बढ़ी है। देष भर में आदिवासियों की जमीन अलग-अलग बहानों से छीनी जा रही है। जिस जमीन पर वह सैकड़ों सालों से रह रहा है। उस जमीन को उससे खाली कराया जा रहा है। बारा, शिवपुरी, ग्वालियर में छोटा-छोटा पंजाब बसा हुआ है। चूंकि पंजाब से जाकर लोगों ने कम कीमत पर आदिवासियों की जमीन इन इलाकों में खरीदी। जिससे आदिवासी बेघर हुए। एकता परिषद ने ऐसे 650 एकड़ जमीन लहरौली में गरीबों को वापस कराई। यह सही है कि सरकार के लिए सभी गरीबों को जमीन देना मुश्किल है लकिन जिन लोगों के पास पहले से जमीन है, उनकी जमीन की हिफाजत की जिम्मेदारी सरकार ले सकती है। आदिवासी इलाकों में जाकर देखिए, खदान आदिवासी का खनन कोई और कर रहा है, जमीन आदिवासी के नाम पर और जोत कोई और रहा है, ट्रक्टर आदिवासी के नाम पर और कब्जा किसी और का है। बुंदेलखंड में जमीन , जंगल सब ताकतवर लोगों के हाथ में है। टीकमगढ़ में एक दलित महिला ने बताया कि किस तरह उसकी सात एकड़ जमीन पर रावतपुर साकार ने कब्जा कर रखा है। आज जिन संसाधनों पर गरीब आदिवासी बैठे हुए हैं, कायदे से वे जिसके मालिक हैं, वह सब इन गरीब आदिवासियों से छीन कर अमीर लोगों के हाथ में पहुंचाया जा रहा है। आज राष्ट्रीय उद्यान, वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी, टाइगर रिर्जव जैसी परियोजनाओं के नाम पर लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को विस्थापित और बेघर किया गया है। इन्हें इस विस्थापन के बदले में सरकार से कोई मुआब्जा भी नहीं मिला है।

नक्सली भी अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में होने वाले किसी भी प्रकार के उत्खनन में हिस्सेदार हैं। उनकी गतिविधियां भी इसी पर फल-फूल रही हैं। स्थितियां कुछ इस तरह की है कि सरकारी नौकरी करने वालों से लेकर ठेकेदार जैसे प्रभावषाली लोगों को कॉनफिल्कट जोन ही प्यारा है। एवरीबडी लव्स ए गुड कॉनफिल्कट। संघर्ष का क्षेत्र वास्तव में आज के समय का सबसे लाभ देने वाला व्यवसाय है। देष भर का जिला-जिला खुद को नक्सल प्रभावित घोषित कराना चाहता है। कई बार अहिसंक किस्म के आंदोलन के साथ भी यह अनुभव सामने आया है कि उसे नक्सल आंदोलन को बढ़ावा देने वाला आंदोलन कह कर प्रचारित किया गया है।

सरकार के इस मानसिकता को भी समझने की जरूरत है कि वह नक्सली, उल्फा, बोडो सबसे बात करने को तैयार है, चूंकि यह सब हिंसक आंदोलन में बिश्वास रखने वाले लोग है। लेकिन उन लोगों के लिए सराकर के पास कोई नीति नहीं है, जो लोग अहिंसक तरीके से अपना आंदोलन चला रहें हैं। सरकार को चाहिए कि वह हिंसा की जगह अहिंसा को बढ़ावा दे। जो लोग अहिंसक रास्ते से अपनी बात कहना चाहते हैं, उन्हें भी सुने। सरकार के पास शांति के साथ बात रखने वालों के लिए कोई मंत्रालय नहीं है। सरकार के पास सुरक्षा का लंबा चौड़ा बजट है लेकिन उसके पास शांति को लेकर कोई बजट नहीं हैं। शांतिपूर्ण कार्यवाही की वजह से ही चंबल से डकैतों का आत्मसमर्पण हुआ। यदि सरकार हिंसा के दम पर यह करने जाती तो करोड़ों रुपये खर्च होते और सरकार की सफलता भी संदिग्ध रहती।

जहां नक्सल समस्या है, वहां की बात ना करें तो भी जिन इलाकों में नक्सल की समस्या नहीं है, उन इलाकों में शांति बनी रहे और यह समस्या वहां तक न पहुंचे इसके लिए सरकार के पास क्या योजना है? वास्तव में जब पूरा देश ही हिंसा को बढ़ावा देने पर आमदा है तो वही होगा। देश का महानगरिय समुदाय समझता है कि जमीन, किसान और पानी के मुद्दे से उसका क्या सरोकार लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा है कि यह सब गरीबों के हाथों से छीनना न रूका तो अपना सबकुछ गंवा चुका एक आदिवासी या गरीब व्यक्ति गांव में कैसे रहेगा। जब उसके पास न वहां घर है, न जमीन, न रोटी है न रोजगार है। यदि यह सब यूं ही चलता रहा तो उन करोड़ों लोगों को महानगरों में पनाह देने के लिए इन महानगरिय समुदाय के लोगों को तैयार रखना चाहिए। सब कुछ यूं ही चलता रहा तो वे सब लोग महानगरों की तरफ ही आएंगे, यही झुग्गी डाल कर रहेंगे और कभी वापस नहीं जाएंगे क्योंकि वे अपना सब कुछ सरकार के हाथों गंवा कर ही तो यंहा आएंगे। यदि हम अपने आराम को ठीक प्रकार से समझते हैं तो हमें दूसरों के आराम को भी समझना होगा। महानगरिय मध्यम वर्ग को यह समझना चाहिए कि वे आदिवासी और गरीब किसानों की कब्र पर लिखी जा रही विकास की कहानी के पर कैसे सो पाएंगे और सरकार को यह समझना चाहीए कि समाज को विभिन्न तरह की योजनाओं के अंदर पचास रुपये और सो रुपये बांट कर, वह समाज में कल्याणकारी की अपनी छवि तो बना सकता है लेकिन वह कभी इस तरह आत्मनिर्भर समाज का निर्माण नहीं कर पाएगा। इस तरह मांगने वालों का समूह तैयार होगा। संरचनात्मक हिंसा को समझे विना और उस पर लगाम लगाए बिना हम समाज के हिंसा पर काबू नहीं पा सकते।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं गांधी मार्गी विचारक हैं। यह आलेख सोपान स्टेप व्याख्यानमाला में प्रस्तुत उनके विचारों पर आधारित है।)

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