Saturday, October 8, 2011

भारत में लिंगानुपात

संजीव कुमार

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के राष्ट्रीय लिंगानुपात में 7 अंकों की वृद्धि हुई है। 2001 की जनगणना में प्रति 1000 पुरुष पर 933 (932.91) स्त्री थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 940 (940.27) स्त्री पर पहुंच गया है। राष्ट्रीय लिंगानुपात में यह वृद्धि देश के लिए एक अच्छा संकेत है। क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से यह 1971 की जनगणना के बाद से दर्ज सबसे उंचा लिंगानुपात है। वहीं 1961 की जनगणना की तुलना में थोड़ा कम है। इस जनगणना में 29 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में लिंगानुपात में वृद्धि देखी गई है। तीन प्रमुख राज्यों- जम्मू-कश्मीर, बिहार और गुजरात के लिंगानुपात में 2001 की जनगणना की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दूसरी

बताते चलें कि लिंगानुपात में प्रति एक हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या को गिना जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, केरल में सर्वाधिक तरफ 0-6 वर्ष के बच्चों के लिंगानुपात में 13 अंकों की कमी आई है। यह बेहद ही चिंताजनक है। क्योंकि बच्चे ही देश के भविष्य हंै। अगर इसी तरह बच्चों के लिंगानुपात में लगातार गिरावट आती रही तो आने वाले दिन में राष्ट्रीय लिंगानुपात में भी कमी आएगी।
लिंगानुपात 1,084 वाला राज्य है। इसके बाद 1,038 के लिंगानुपात के साथ पुडुचेरी का दूसरा स्थान है। वहीं दमन एवं दीव में लिंगानुपात सबसे कम 618 है। तो एक हजार पुरुष पर 775 महिलाओं के साथ नागर एवं हवेली दूसरा सबसे कम लिंगानुपात वाला राज्य है। यही लिंगानुपात अगर जिला में देखें तो जिलों में माहे (पुडुचेरी) सबसे अधिक लिंगानुपात प्रति एक हजार पुरुष पर 1,176 स्त्री वाला जिला है, इसके बाद उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिला का लिंगानुपात 1,142 है। वहीं दमन जिले में सबसे कम लिंगानुपात प्रति एक हजार पुरुष पर 533 स्त्री वाला जिला और इसके उपर लद्दाख के लेह जिले का लिंगानुपात 583 है। गौरतलब यह है कि केरल भारत का अकेला ऐसा राज्य है जिसके सभी जिलों का लिंगानुपात 1,000 से अधिक है। वहीं कुछ ऐसे भी राज्य हैं जिनके किसी भी एक जिले का लिंगानुपात 1000 नहीं है। उनमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, गोवा, असम, त्रिपुरा, सिक्किम, नागालैंड, पश्चिम बंगाल, दादर व नागर हवेली, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह और चंडीगढ़, प्रमुख हैं।
भारत में असमान लिंगानुपात के बारे में जानकारों का मानना है कि कन्या भ्रूण हत्या और चयनात्मक लिंग निर्धारण
इसके महत्पूर्ण कारण है। विशेषज्ञों के अनुसार, आज भी समाज में एक तरफ लड़के-लड़कियों में भेद किया जाता है तो दूसरी तरफ दहेज के लिए बहुओं की हत्या तक कर दी जाती हैं। कहने को तो आज हम अपने को विकासशील और आधुनिक मानते हैं लेकिन मानसिक तौर पर आज भी हम उपर नहीं उठे हैं। हम आज भी पुरातनपंथी हैं। लड़की के स्थान पर लड़कों को तरजीह देते हैं। इसके लिए हम 0-6 वर्ष की आयु समूह के बच्चों का लिंगानुपात देख सकते हैं। 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लिंगानुपात 914 है। 2001 की जनगणना में जहां बच्चों का लिंगानुपात 927 (927.31) था, वहीं 2011 के आंकड़ों के अनुसार बच्चों का लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 914 (914.23) लड़कियां हैं। यानी बच्चों के लिंगानुपात में 13 अंकों की कमी आई है। बच्चों के लिंगानुपात यह गिरावट हमारे लिए चिंता की बात है। कहने का अर्थ यह है कि पिछले एक दशक में हमारे समाज में लगातार लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को प्राथमिकता दी गई है। बताते चलंे कि 0-6 वर्ष के आयु समूह का लिंगानुपात 1961 की जनगणना से लगातार घट रही है लेकिन 2011 की जनगणना में बच्चों के लिंगानुपात में आजादी के बाद से सर्वाधिक गिरावट देखने को मिली है। आंकड़ों के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुज
रात, तमिलनाडु, मिजोरम और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिंगानुपात में वृद्धि के रुझान मिले हैं। वहीं शेष 27 राज्यों/संघशासित क्षेत्रों में, बच्चों के इस लिंगानुपात में 2001 की जनगणना की तुलना में गिरावट ही देखी गई है। 6 वर्ष से कम आयु समूह के बच्चों की संख्या अब 158.8 मिलियन है जो 2001
की जनगणना से 5 मिलियन से कम है।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों मंे सर्वाधिक लिंगानुपात (971) मिजोरम का है। वहीं 970 के लिंगानुपात के साथ मेघालय दूसरे स्थान पर है। सबसे कम लिंगानुपात 830 वाला राज्य हरियाणा है जबकि 846 के लिंगानुपात के साथ पंजाब दूसरे स्थान पर है। जिला स्तर पर 0-6 आयु समूह में हिमाचल प्रदेश के लाहुल एवं स्पीति में सबसे अधिक लिंगानुपात 1013 है, जबकि तवांग (अरुणाचल प्रदेश) 1005 के लिंगानुपात के साथ दूसरे स्थान पर है। बच्चों का लिंगानुपात सबसे कम हरियाणा के झज्जर एवं महेन्द्रगढ़ जिले में क्रमशः 774 एवं 778 है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए लिंग-निर्धारण परीक्षण पूर्व-प्रसव निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियमन व निवारण) अधिनियम आज भी पूरी तरह अप्रभावित है।
इस जनगणना के आंकड़े से यह स्पष्ट है कि शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों का लिंगानुपात अधिक है। साथ ही शहरी क्षेत्रों से सटे ग्रामीण क्षेत्र भी शहरी आबोहवा से प्रभावित हुए हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिंगानुपात में भी गिरावट आई है। उदाहरण के तौर पर पिछड़े राज्य झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम (1004) और सिमडेगा (1000) का लिंगानुपात अधिक है लेकिन शहरी जिले रांची (950), धनबाद (908) और बोकारो (912) के लिंगानुपात में कमी आई है। इस तरह 2011 के इन आंकड़ों से बच्चों का
लिंगानुपात देश के दक्षिण एवं पूर्वी हिस्से में तो संतोषजनक दिखता है लेकिन पूरे उत्तर और पश्चिमी भारत में जो तस्वीर उभरती है वह देश के भविष्य को लेकर मन में शंका उत्पन्न करती है।






रंजना कुमारी, निदेशक, सेंटर फार सोशल रिसर्च

‘‘2011 की जनगणना के अनुसार लिंगानुपात को लेकर जो आंकड़े आएं हैं वह थोड़ा संतोषजनक है। क्योंकि राष्ट्रीय लिंगानुपात में जो सात अंकों की वृद्धि हुई है, वह हमारे देश के लिए शुभ संकेत है। लेकिन बच्चों के लिंगानुपात में जो गिरावट दर्ज हुई है वह चिंतानजक है। हमें इस पर सोचने की जरूरत है कि हम बेटा और बेटी में भेद क्यों कर रहे हैं। जब तक यह भेद खत्म नहीं होगा लिंगानुपात में यह अस मानता बरकरार रहेगी।’’





मधु किश्वर, संपादक, मानुषी पत्रिका

‘‘राष्ट्रीय लिंगानुपात में वृद्धि और 0-6 वर्ष के बच्चों के लिंगानुपात में गिरावट मेरे समझ से परे है। हमारा समा
ज आज भी 18 वीं शताब्दी में जी रहा है। आज जब बेटियां हर क्षेत्र में अपना अलग मुकाम बना रही है। अपना और अपने परिवार का नाम रौशन कर रही है। फिर भी हम इन बेटियों
को जन्म से पूर्व ही मां के कोख में मार देते हैं। इसके लिए सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा बल्कि हर एक मां को सोचना होगा कि वह भी तो एक स्त्री ही है फिर कैसे किसी स्त्री (बच्ची) की हत्या वह कर सकती है।’’

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