दिलीप दास / धनबाद (झारखण्ड)
हर चमकती वस्तु जैसे सोना नहीं होती, उसी प्रकार संसाधनों से परिपूर्ण क्षेत्र में सभी शिक्षित और संपन्न नहीं होते हैं| अब झारखण्ड को ही लीजिये खनिज संपदाओ से परिपूर्ण यह सूबा गरीबी और अशिक्षा से अपना पिचा नहीं छुड़ा पा रहा है| यहां महगा और प्रतिभा की कमी नहीं है तो अशिक्षित बच्चों व युवाओं की भी लम्बी कतार है|
सूबे से अशिक्षा को दूर करने के लिए भले ही सरकार बड़ी- बड़ी योजनाएं बना रही हो, लेकिन आज भी छोटे बड़े शहरों में सड़क पर घूमते ऐसे सैकड़ो बच्चे मिलेंगे जो यह भी नहीं जानते की पढ़ाई किसे कहते है|
वैसे कुछ छोटे-छोटे प्रयासों से इस दिशा में कुछ ठोस पहल भी शुरू हुई है| राजधानी रांची में ऐसे सड़क छाप बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा स्वं सरकार ने लिया है| सर्वशिक्षा अभियान के तहत यहां छह उत्प्रेरक केंद्र खोले गए हैं जिनमें लगभग 400 बच्चे शिक्षा पा रहे हैं| इसी प्रकार का एक केंद्र गुमला में भी चल रहा है| यहां भी लगभग 100 बच्चे पढ़ते हैं| धनबाद में भी एक एनजीओ द्वारा रेलवे स्टेशन क्षेत्र के बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है| अगर सभी जिलों में ऐसे प्रयास हुए तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य में कोई बच्चा शिक्षा से वंचित रह पाएगा|
देश की कोयला राजधानी धनबाद का रेलवे स्टेशन वैसे कुछ चुनिंदा स्टेसनों में शुमार है जहां दिन और रात का अंतर समझ में नहीं आता है| यहां दिन से अधिक ट्रेन रात में गुजरती है| स्टेशन के बहार दर्जनों चाय और नाश्ते की दूकान व होटल मोजूद है| इसके अलावा चुराए गए कोयले को विभिन्न ट्रेनों से बहार भेज दिया जता है| इस कारोबार में छोटे बच्चे आसानी से लग जाते हैं जो अनाथ है या जिनके माता-पिता उतने सामर्थ्यवान नहीं है की उनका भरण पोषण कर सकें| बचपन में ही जीवन यापन का बोझ इन पटर आ जाता है| ऐसे में पढ़ाई-लिखी क्या होती है ये भला क्या जानें| पढ़ने और खेलने की उम्र को ये होटलों में झूटे बर्तन धोने और कोयले से भरी बोरी को रेल में चढाने में गुज़ार देते हैं| इनके एवज में उन्हें जो रूपया मिलता है उससे मुश्किल से पेट भर पाते हैं| कुछ बच्चे ऐसे भी है जो शारीरिक रूप से थक जाने के बाद नशे की दवा लेकर ही सो पाते हैं| ऐसे बच्चों से पढ़ाई की बात करना और उसके लिए इन्हें तैयार करना आसान नहीं|
स्थानीय सामाजिक संस्थान सृष्टि जनमानस नवनिर्माण द्वारा धनबाद स्टेशन परिसर में ऐसे बच्चों के लिए चार वर्ष पूर्व सृजन स्रमोदय विद्यालय की नीव डाली गई| संचालको को प्रारंभ में तो विद्यालय तक लाने में काफी मसक्कत करनी पड़ी| लेकिन बाद में यह काम आसान हो गया| लगभग दो दर्जन बच्चे वर्तमान में नियमित आध्यापन को आते हैं और उतने ही प्राम्भिक शिक्षा लेने के बाद स्थानीय सरकारी विद्याकयो में जाने लगे हैं|
संस्था के सचिव अशोक कंठ बताते हैं कि एकल शिक्षा वाले इस अध्यन केंद्र का खर्च समाज के कुछ मानिंद लोगों के सहयोग से चलता है| पर्व त्योहारों पर प्रशासनिक अधिकारी इनके भीच आकर इनका उत्साह बढ़ाते हैं| स्टेशन परिसर में ही विद्यालय चलने से इन्हें अपना काम काज निबटा कर यहां आने में परेसानी नहीं होती है| अक्षर ज्ञान के साथ ही इन्हें अच्छे संस्कार भी मिलते हैं| विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे स्टेशन क्षेत्र की आपराधिक गतिविधियों से दूर रहते हैं और इनका मनोबल काफी बढ़ा है| बच्चों को यहां बेसिक शिक्षा देने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी विद्यालय में नामांकन करा दिया जाता है| शिक्षा के प्रति ललक बढ़ने के कारण ये स्कूल में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं|
अगर, इस प्रकार के प्रयास देश के अन्य रेलवे स्टेसनों और बस पड़ावों के आस-पास किया जाये तो सड़क पर घुमने वाले ऐसे बच्चों को शिक्षित करना मुश्किल नहीं| धनबाद में राज्य सरकार के सर्वशिक्षा अभियान से जुड़े मदन बताते हैं कि जिलें में ऐसे 300 बच्चे चिन्हित किये गए हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं| ऐसे बच्चों के लिए उत्प्रेरक केंद्र खोलने कि योजना है| स्थान कि तलाश हो रही है| शीघ्र ही अभियान के तहत ऐसे केंद्र खोले जाएंगे|
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