Wednesday, July 6, 2011

बिहार में शहद की बढ़ी मिठास



संतोष सारंग\ मुजफ्फरपुर (बिहार)

बिहार का मुजफ्फरपुर जिला लीची के लिए प्रसिद्ध है। इसका लाभ मधुमक्खी पालन में खूब हो रहा है। यहां सबसे अधिक लीची मधु का ही उत्पादन होता है। लीची के मधु की मांग सर्वाधिक है। तब सरसों, जामून, करंज, सूर्यमुखी, मूग, सहजन के मधु का नंबर आता है। मधुमेह के रोगी जामून के मधु का प्रयोग अधिक करते हैं।
शहद उत्पादन के क्षेत्र में बिहार देश का अव्वल राज्य बन गया है। पंजाब को पीछे कर दिया। हालांकि निर्यात में आज भी पंजाब ही आगे है, लेकिन उत्पादन में उसे मात दे दिया। अब राज्य में शहद का सालाना कारोबार 210 करोड़ का हो गया है। दिग्गज कारोबारी और निर्यातक कंपनियां बिहार की ओर रुख करने लगी है। इनमें सबसे अधिक पंजाब की ही कंपनियां व व्यापारी शामिल हैं। कश्मीर अपीयरी प्रा. लि., अतीश नेचुरल प्रा. लि., लिटिल बी इम्पैक्ट, केजरीवाल इंटरप्राइजेज जैसी कंपनियां बिहार के मधुपालकों से मधु खरीद कर अच्छी कमाई कर रही हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में मधु का उत्पादन 35 हजार टन पहुंच गया है। जबकि पंजाब 25 हजार टन उत्पादन के साथ दूसरे नंबर पर है। बिहार से करीब 90 फीसदी शहद का निर्यात होता है। बाकी मधु स्थानीय बाजारों में ही खप जाता है। अब तो दूध के कारोबार में सफलता का परचम लहराने वाला तिरहुत और पटना की दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां भी मधु की पैकेजिंग कर मार्केट उपलब्ध करा रही हैं। मुजफ्फरपुर की सुधा डेयरी ने कुछ दिन पहले प्रोसेसिंग प्लांट लगाया है। मधु के प्रोडक्ट सुधा के काउंटर पर मिल रहे हैं। डिमांड भी बढ़ रही है। बिहार से मधु कोलकाता, मुंबई भी जा रहा है। बिहारी मधु की मांग यूरोपियन और खाड़ी देशों में काफी है। सनद रहे कि यहां के मधु में वसा की मात्रा न के बराबर होती है। इसी वजह से विदेश के लोग स्लाइस ब्रेड में मक्खन की जगह शहद का इस्तेमाल करते हैं।
इधर, मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में बिहार के लोगों की बढ़ रही रुचि और राज्य सरकार के उद्योग-धंधों के प्रति स्पष्ट नजरिये को देखते हुए कई उत्पादक कंपनियां यहां कारखाना लगाने में रुचि दिखा रही हैं। दरभंगा के दोनार औद्योगिक क्षेत्र में नैचुरल हनी (शहद) बनाने की फैक्ट्री ‘एसवीजे इंटरप्राइजेज प्रा. लि.’ नाम से लग चुकी हैं। कंपनी के चेयरमैन सुरेश झा कहते हैं कि मिथिलांचल का मधु दूसरे देशों में भी निर्यात किया जायेगा। उन्होंने कहा कि फैक्ट्री का वार्षीक उत्पादन क्षमता नौ सौ टन होगा। इससे न सिर्फ मधुपालकों को बल्कि लीची, सरसों और सूर्यमुखी की खेती करने वाले किसानों को भी बाजार मिलेगा।
निःसंदेह बिहार में मधु का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन मधुमक्खी पालकों को उत्पाद का उचित कीमत नहीं मिल रहा है। पालक कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। नरौली, मुजफ्फरपुर के मधुमक्खी पालक गरीबनाथ भगत कहते हैं कि दो साल से घाटा हो रहा है। शहद का अच्छा रेट नहीं मिल रहा है। इस वर्ष 80 रुपये प्रति लीटर बिका। गत वर्ष इससे कम कीमत मिली। इनका कहना है कि प्रति लीटर 100 रुपये मिले तो पालकों को फायदा होगा। कुछ यही पीड़ा अन्य पालकों की भी है। वे कहते हैं कि बिक्री का तरीका गलत है। दलालों के माध्यम से बाहरी कारोबारी खरीद करते हैं। उत्पादक को कीमत कम मिलता है, जबकि बिचौलिये मालामाल होते हैं। इस कारण सही मधु इसकी मार्केटिंग व पैकेजिंग में लगी कंपनियों तक नहीं पहुंच पा रहा है। मिलावट हो रही है।
इतना ही नहीं। लीची, सरसों, मूंग का सीजन खत्म होने पर पालकों को मधुमक्खी को जीवित रखने और प्रोडक्शन बनाये रखने के लिए अन्य राज्यों की ओर बक्सा ले जाना पड़ता है। पालक बक्से झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ ट्रक पर लाद कर ले जाते हैं। इस दौरान उन्हें ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रास्ते में पुलिस को चुंगी देनी पड़ती है तो बागान मालिक और स्थानीय दबंगों का भी शोषण सहना पड़ता है। इन्हें संरक्षण देने वाला कोई नहीं है। पालक अपने बलबूते इस काम को ऊंचाई पर ले जा रहे हैं और बिहार को मधु के क्षेत्र में अव्वल बना रहे हैं।
पूंजी के अभाव में कई पालक मधुमक्खी पालन से मुंह भी मोड़ रहे हैं। मुजफ्फरपुर जिले के हरिहरपुर के पालक राजीव रंजन ने भी दो साल तक मधुमक्खी पालन किया। अंततः ऊबकर उसने धंधा बदल लिया है। अस्सी के दशक के शुरूआत में सरकार ने पालकों को सब्सिडी देना शुरू किया था, लेकिन 1994 में वह भी बंद हो गया। अल्पकालीन लोन भी बंद हो गया। हालांकि कुछ पालकों ने बताया कि उसे समेकित कृषि प्रणाली के अंतर्गत अनुदान मिला है, लेकिन अधिकांश पालक अनुदान व लोन से वंचित ही हैं। बिहार खादी ग्रामोद्योग आयोग समय-समय पर इच्छुक लोगों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण देता है।
मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग संघ के मंत्री वीरेन्द्र चौधरी बताते हैं कि हमने मधु के कारोबार को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए एक छोटा प्रोसेसिंग प्लांट केवीआईसी के स्फूर्ति प्रोग्राम के तहत यूएनडीपी की मदद से लगाया है। लेकिन पूंजी के अभाव हम पालकों से जितना चाहिए, उतना मधु नहीं खरीद पाते हैं। इनका कहना है कि हरेक बक्से का इंश्योरेंस होना चाहिए। लेकिन राज्य सरकार की कोई ऐसी योजना नहीं है जो बिहार के लगभग 15 हजार पालकों को इस काम को आगे बढ़ाने में मदद करे। सीतामढ़ी में भी एक छोटी यूनिट लगायी गयी है। इधर, मुजफ्फरपुर स्थित सुधा डेयरी ने भी एक बड़ा प्रोसेसिंग यूनिट लगाया है। इसका प्रोडक्शन क्षमता भी अधिक है। सुधा के मधु विभाग के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर फूल झा कहते हैं कि तिरहुत दुग्ध उत्पादक सहयोग सहकारी समिति ने यहां के पालकों को समय-समय पर प्रशिक्षण, उचित दिशा-निर्देश व बाजार दिया है। हमारी योजना मधु के बाजार को और विस्तार देने की है। हालांकि अभी तक बिहार में मधु की सिर्फ पैकेजिंग व प्रोसेसिंग कर बोतल बंद शहद ही बेची जा रही है। इसका बाइप्रोडक्ट बनाने के लिए कोई प्लांट नहीं है। जबकि शहद का उपयोग मेडीसिन, जूस, चॉकलेट, साबुन के निर्माण में है। यह अलग बात है कि उक्त प्रोडक्ट बनाने वाली बाहरी कंपनियां यहां से शहद खरीद रही हैं।
सनद रहे कि मुजफ्फरपुर का नरौली, मीनापुर, पटियासा, प. चंपारण का मेहसी, वैशाली का मिरजानगर, भगवानपुर व गौरौल, समस्तीपुर, भागलपुर, खगड़िया, मुंगेर मधुमक्खी पालकों का गढ़ है। पटियासा का लगभग 80 फीसदी परिवार इस काम में लगा है और उम्मीद से ज्यादा आर्थिक प्रगति कर रहा है। एक-एक पालकों के पास चार-पांच सौ से अधिक बक्से हैं। पालक शंकर प्रसाद के पास लगभग 700 बक्सा है। पटियासा की हनी गर्ल अनीता, मेहसी के जीतन कुमार, नरौली के अजय, बेला का मूसन मधुवाटिका, शिवराहा बोचहां के सत्यनारायण आजाद आदि प्रमुख नाम हैं, जो इस क्षेत्र्ा में नाम कमाया है। सिर्फ मुजफ्फरपुर में पांच हजार मधुमक्खी पालक हैं। मुजफ्फरपुर में पिछले दिनों मधुमक्खी पालन को संगठित रूप देने के लिए ‘तिरहुत मधु उत्पादन स्वावलंबी सहकारी परिसंघ’ की स्थापना की गयी है। इसके तहत 18 समितियों का गठन किया गया है। परिसंघ के अध्यक्ष शंकर प्रसाद बताते हैं कि परिसंघ समितियों का उद्देश्य मधु को बाजार उपलब्ध कराना, फिल्ड का मुआयना कर पालकों की समस्याओं का समाधान करना आदि है।
मधु के क्षेत्र में डंका बजाने वाले पालकों को सरकार की ओर से उचित माहौल, संरक्षण, आर्थिक सहायता व बाजार उपलब्ध कराने की जरूरत है। क्योंकि जिन पालकों ने अपने बूते राज्य का नाम रोशन किया है और अपने परिवार को आर्थिक समृद्धि दी है, उन्हें सहयोग मिले तो यह सेक्टर हजारों हाथों को रोजगार दे सकता है।

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