देश में अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल स्तर में गिरावट आ रही है। केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण के मुताबिक़ देशभर के 18
राज्यों में 286 ज़िलों में पिछले दो दशकों के दौरान भू-जल स्तर चार मीटर गिरा है। हरियाणा के महेंद्रगढ़ और कुरुक्षेत्र में भूजल स्तर हर साल क्रमश: 54 और 48 सेंटीमीटर की गति से गिर रहा है। पंजाब के 80 फ़ीसदी क्षेत्र में भू-जल स्तर में ख़तरनाक स्थिति तक गिरावट दर्ज की जा रही है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक़ कुरुक्षेत्र, करनाल, गुड़गांव, मेवात, पानीपत, कैथल, रेवाड़ी, यमुनानगर, पंचकुला, फ़रीदाबाद, सोनीपत और महेंद्रगढ़ ज़िलों में औसत भू-जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है। क़ाबिले-ग़ौर है कि ज़मीन में पानी के रीचार्ज के मुक़ाबले ट्यूबवेल 40 से 50 फ़ीसदी भूजल का दोहन कर रहे हैं। हरियाणा स्टेट माइनर इरिगेशन ट्यूबवेल कॉरपोरेशन और सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 1996 में 27,957 ट्यूबवेल थे, लेकिन 2000 में इसकी तादाद बढ़कर 83,705 हो गई। मौजूदा वक्त में राज्य में क़रीब 6,11,603 ट्यूबवेल बताए जा रहे हैं। इन में से 2,80000 ट्यूबवेल डीजल और तीन लाख ट्यूबवेल बिजली से चलाए जा रहे हैं। इसी तरह पंजाब में भी हर साल ट्यूबवेलों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरविदों के मुताबिक़ भारत में भूमि प्रबंधन का परिदृष्य बेहद निराशाजनक है। आज़ादी के बाद सिंचाई के परंपरागत तरीक़ों के बजाय आधुनिक सिंचाई प्रणालियों को अपनाया गया, जिससे भूमि की उत्पादकता में कमी आई है।
पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के सिविल रिट पटिशन संख्या 20032 (2008) के निर्देश के तहत गुड़गांव ज़िला प्रशासन ने 105 गांवों में ट्यूबवेल और बोरवेल लगाने पर पाबंदी लगा दी है। इनमें चौमा, पनवाला, खुसरोपुर, खुसरापुर, कार्टरपुरी, नसीराबाद, मौलाहेड़ा, डूंडाहेड़ा, नाथुपुर, सिकंदरपुर, चक्रपुर, वज़ीराबाद, घाटा, सिरहौल, सुखराली, मतीखेड़ा, चंद्रनगर, सालूखेड़ा, दौलतपुर, कन्हैई, झाड़सा, समसपुर, टींकरा, इस्लामपुर, नाहरपुर रूपा, शिवाजी नगर, गुड़गांव शहर, भीमगढ़, कादीपुर, खांडसा, मोहम्मदपुर, बामरोली, हरसरू, गाडरौली खुर्द व कलां, बसई, धनवापुर, दौलताबाद, गढ़ी हरसरू, हयातपुर, सिकंदरपुर बढ़ा, खेदकीदौला, नरसिंहपुर, रामपुर, शिकोहपुर, बेगमपुर खटोला, फाजिलपुर झाडसा, दरबारीपुर, हसनपुर, ढाणी रामपुर, पलडा, सकतपुर, नूरपुर, घसोला, बादशाहपुर, मैदावास, रामगढ़, उल्लाहावास, ब्रह्मापुरण्य, कादरपुर, बहरामपुर, गुड़गांव गांव, धूमसपुर, अकलीमपुर, टीकली, गवालपहाड़ी, रंगहरीखेड़ा, बजघेड़ा, टीकमपुर, मोहम्मदहेड़ी, अलावर्दी सराय, इनायतपुर, हैदरपुर, नंगली ओमेरपुर, आदमपुर, फतेहपुर, टीकरी, विंदापुर, सिही, शाहपुर, धर्मपुर, बाबूपुर नखडौला, चंदू, साढराणा, गोपालपुर, गढी, हमीरपुर, वजीरपुर, ढोरका, मेवका, नवादा फतेहपुर, काकरौला, कासन, नाहरपुर कासन, खोह, सहरावन, मानेसर, नौरंगपुर, नयनवा, बंडगुर्जर, बालियावास और बंधवाड़ी आदि शामिल हैं।
अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के एक अध्ययन के मुताबिक़ आने वाले पांच से दस सालों में उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भू-जल स्तर तेज़ी से गिर रहा है। इन राज्यों में भू-जल स्तर में पिछले सात सालों में एक फुट प्रतिवर्ष की गिरावट दर्ज की गई है इसका मुख्य कारण सिंचाई में भूमिगत जल का इस्तेमाल करना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की सबसे बड़ी झील वानगंगा की क्षमता से दोगुना भूजल सूख चुका है। वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तर भारत में जेट पंप आदि से भूजल का दोहन तेज़ी से किया जता रहा है, जो कि प्राकृतिक दोहन से कहीं ज्यादा है। इतना ही नहीं इन राज्यों में मिट्टी में नमी भी खत्म होती जा रही है, जो खेती पर संकट की निशानदेही है।
जल संसाधन मंत्रालय के मुताबिक़ जनवरी, 2007 में उपहिमालयी क्षेत्र, गंगा नदी की उपरी ओर जल स्तर की गहराई साधारणतः 2-5 मीटर सतह के नीचे (एमबीजीएल) के मध्य है। कुछ स्थानों में 2 मीटर से कम उथला जल स्तरभी देखा गया है। देश के पूर्वी हिस्से में ब्रह्मपुत्र घाटी में कुछ स्थानों के अलावा जहां जल स्तर की गहराई 2 एमबीजीएल से कम है। अमूमन जल स्तर की गहराई 2-5 एमबीजीएल के बीच है। हालांकि ऊपरी असम में कुछ गहरे जल स्तर वाले स्थानों में 5-10 एमबीजीएल की गहराई भी पाई गई है। सिंधु बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल स्तर गहराई अमूमन 10-20 एमबीजीएल के बीच है। गुजरात और राजस्थान को शामिल करते हुए देश के पश्चिमी हिस्से में 10-20 एमबीजीएल के बीच ज्यादा गहरा जल स्तर पाया गया है। राजस्थान के जोधपुर, चुरू, जालोर, नागौर, झुनझुनु तथा जयपुर जिलों में 40 मीटर से गहरा जल स्तर पाया गया है। पश्चिमी तट पर जल स्तर सामान्यतः 5-10 मी. के मध्य है। महाराष्ट्र के पश्चिमी हिस्से में 5 मीटर से कम जल स्तर रिकॉर्ड किया गया। पूर्वी तट यानी तटीय आंध्रप्रदेश तथा उड़ीसा में सामान्यतः जल स्तर 2-5 मीटर के बीच है। हालांकि 2 मीटर से कम जल स्तर वाले कुछ पाकेट भी रिकार्ड किए गए। गंगा बेसिन के पूर्वी हिस्से में जल स्तर अमूमन 2-5 एमबीजीएल के बीच है। पश्चिम बंगाल के पूर्वी हिस्से में 5-10 एमबीजीएल के बीच जल स्तर पाया गया। मध्य भारत में कुछ पाकेटों जहां जल स्तर 10 एमबीजीएल से अधिक है अमूमन जल स्तर 2-10 एमबीजीएल के बीच है। देश के प्रायद्वीपीय हिस्से में एकाध पाकेटों में जहां जल स्तर 10-20 एमबीजीएल है सामान्यतः जल स्तर 2-10 एमबीजीएल के मध्य है। कुछ पाकेटों में 20-40 मीटर और 40 मीटर से ज्यादा गहरे जल स्तर भी पाए गए हैं।
जनवरी, 2006 में पिछले साल के जलस्तर के मुक़ाबले पूरे देश में जल स्तर के मिले जुले रूझान हैं। जल स्तर में गिरावट मुख्यतः आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में देखी गई। आंध्रप्रदेश में राज्य के बड़े हिस्से में जल स्तर में व्यापक गिरावट देखी गई। 25 से अधिक मानीटरिंग कुओं में 2 मीटर से ज्यादा जल स्तर में गिरावट पाई गई। 2-4 मीटर की गिरावट तेलगांना क्षेत्र में खम्मम, करीमगंज, रंगारेड्डी नालगोंडा और महबूब नगर में, तटीय क्षेत्र के प्रकासम और नेल्लोर ज़िलों में और रायल सीमा ज़िले के हिस्सों में देखी गई। कर्नाटक में 2 मीटर से ज्यादा जल स्तर में गिरावट रायचुर, बेल्लारी, चित्रदुर्ग, चिकमगलूर, माण्डया, कोलार, सिमोगा, हवेरी गदग, कोपल, गुलबर्ग, मैसूर, बंगलौर शहरी तथा तुमकूर जिलां में देखी गई। तमिलनाडु में 2-4 एमबीजीएल के बीच जल स्तर में गिरावट 10 कुओं में पाई गई और कन्याकुमारी, नागपट्टनम, नीलगिरी और तुतीकोरीन ज़िलों के अलावा सभी ज़िलों में गिरावट का रूझान रहा।
जनवरी, 2007 और औसत जल स्तर (1997-2006) के बीच जल स्तर में उतार-चढ़ाव से पता चलता है कि पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से और पूर्वी राजस्थान में 20 से ज्यादा मानीटरिंग कुओं में जल स्तर में 2 मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई। पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय के हिस्सों, त्रिपुरा और झारखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में जल स्तर में 2 मीटर से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। आंध्रप्रदेश में अदिलाबाद, करीमनगर, मेडक, नालगोंडा और महबूबनगर ज़िलों तथा पश्चिमी गोदावरी, कुडुप्पा और चित्तूर ज़िलों के छोटे छिटपुट क्षेत्रों में जलस्तर में 4 मी. से अधिक की बढ़ोतरी देखी गई। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, रूच, बलरामपुर, बिजनौर, चन्दौली, झांसी, महाराजगंज जिलों के हिस्सों में जल स्तर में 2 मीटर तक की बढ़ोतरी देखी गई। आगरा, इलाहाबाद, बांदा, झांसी, कानपुर, मथुरा, प्रतापगढ़, मुरादाबाद और वाराणसी ज़िलों में 4 मीटर से अधिक की गिरावट पाई गई।
भू-जल स्तर लगातार गिरने से आने वाले वक्त में गंभीर जल संकट पैदा हो जाएगा। इसके अलावा भूजल स्तर गिरावट से पानी में खारापन बढ़ रहा है। खारा पानी सेहत के लिए नुक़सानदेह है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ के मुताबिक पेयजल में 50 टोटल डिजाल्ड सॉलिड से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जबकि कुछ इलाके में इसकी मात्रा 1200 तक पहुंच गई है इससे पेट और किडनी संबंधी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।
बहरहाल, गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
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