Wednesday, May 4, 2011

एक नई पहल


-तेजभानराम/ हरियाणा
देश के नक्से में हरियाणा एक ऐसा राज्य है जो दिल्ली के सबसे करीब रहते हुए भी कई स्तरों पर बहुत पिछड़ा हुआ है। वहां के गांवों में आज भी रूढ़ीवादी परंपराएं अपने उसी रूप में कायम है जैसे सदियों पहले थीं। खाप पंचायतों की तानाशाही जातीय संर्घष को और भी भयावह रूप दे रही है और बालिका शिक्षा को लेकर आज भी लोगों के मन में नीरसता का भाव साफ देखा जा सकता है। कन्या हत्याओं के सबसे अधिक मामले इसी प्रदेष से आते हैं। ताजा जनगणना रिपोर्ट में स्त्री पुरूष का अनुपात इसकी पुष्टी करता है, जो बेहद शर्मनाक है।
सागरपुर हरियाणा का एक ऐसा गांव है जो दिल्ली से 40 किलोमीटर और फरीदाबाद से 15 किलोमीटर दूर है। इस गांव की कुल आबादी डेढ़ हजार के आस-पास है जिसमें एक सरकारी स्कूल, एक पशु अस्पताल, एक पंचायत भवन और साथ में एक देशी शराब का ठेका है, जो सार्वजनिक है। बाकी का सब कुछ गांव वालों के हवाले है। गांव कई जातियों का मिश्रण है। कुछ नौकरी पेशे लोग भी है लेकिन दो तिहाई से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे गुजर करती है, जिनका मुख्य पेशा खेती है। इसलिए सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां शिक्षा का स्तर क्या होगा क्योंकि जमाना भी कॉन्वेन्ट स्कूलों का है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली कॉलेज ऑफ आटर्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर इकोनॉमिक्स के पद पर कार्यरत वीर सिंह इसी गांव के रहने वाले हैं, जो मुश्किलों में पढ़ाई करके यहां तक पहुंचे हैं। उनका मानना है कि देश की सारी समस्याओं की जड़ लोगों का शिक्षित न होना ही है। शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जिसके बल पर किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। और दुर्भागय ही है कि आजादी के छः दशक बीत जाने के बाद भी आम आदमी शिक्षा की पहुंच से बहुत दूर होता जा रहा है। सरकारी स्कूलों का गिरता शक्षिक स्तर, प्राइवेट स्कूलों के अवैध करोबार और अच्छे स्कूलों में लगातार मंहगी होती जा रही शिक्षा आम आदमी को इससे वंचित करने की ही एक साजिश है, जिसमें सरकारी तंत्र शत-प्रतिशत लिप्त है।
आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को शिक्षित करने और आम आदमी के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से वीर सिंह ने उन सभी बच्चों को मुफ्त पढ़ाने का काम शुरू किया है, जो पैसों के अभाव में अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पाते हैं। इसके लिए उन्होंने दो तरह की योजनाएं बनाई है। पहली योजना में वह बच्चे है, जो हाईस्कूल, इंटर पास करने के बाद एसएससी, बैकिंग तथा अन्य कॉम्पटीशन्स की तैयारी करना चाहते हैं लेकिन पैसे के अभाव में वह शहर नहीं जा सकते या किसी कोचिंग संस्थान में एडमिशन नहीं ले सकते। दूसरे में वे बच्चे है, जो गांव के या आसपास के सरकारी स्कूलों में पढ़ते है, जहां शिक्षा का स्तर बहुत ही घटिया है। सागरपुर में एक सरकारी और पांच प्राइवेट स्कूल है। सरकारी स्कूल में महज दो सौ के आसपास छात्रों का नामांकन है जबकि प्राइवेट स्कूलों में इससे कई गुना ज्यादा छात्र नामंकित है। सरकारी स्कूल में 90 फीसदी बच्चे दलित हैं, जो पूरे देश के सरकारी स्कूलों के आकड़े से अलग नहीं है। इस कार्यक्रम को शुरू किए हुए उनको लगभग एक साल हो चुके हैं। वर्तमान समय में कॉम्पटीशन्स की तैयारी करने वाले कुल 12-15 बच्चे नियमित आते हैं, जिनमें सभी स्नातक के छात्र है। स्कूल में पढ़ने वाले कुल 50 बच्चे आते हैं, जिनमें कक्षा एक से लेकर दस तक के छात्र शामिल है। इसमें सबसे ज्यादा लड़कियां है। वीर सिंह स्वयं दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं। उनका लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाना है। और जाहिर सी बात है कि देश में सबसे ज्यादा उत्पीड़ित और शोषित दलित समाज ही है। वहां फिलहाल हफ्ते में कम से कम दो दिन शनिवार और रविवार गांव में जाकर पढ़ाते है। इसके अलावा अन्य छुट्टियां भी वहीं बिताते हैं। इस बार गर्मी की छुट्टियां वो बच्चों के साथ गांव में ही बिताएंगे। जुआरिओं और शराबियों का अड्डा बन चुके गांव के पंचायत भवन को अब बच्चों के पढ़ाने के काम में इस्तमाल किया जाता है।
गांव के बच्चों को हर क्षेत्र में निपुण बनाने के लिए इनके पास ऐसे लोगों की ऐ टीम भी है जो शिक्षा के अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं। और बेहतर समाज की रचना के लिए अपना कुछ योगदान देना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें किसी तरह के मानदेय की आवश्यकता नहीं है। उन्हीं में से एक हैं- दीनामणि भीम, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के सहीद भगत सिंह कॉलेज में पोलेटिकल के असिस्टेंट प्रोफेसर है। दीनामणी सप्ताह में दो दिन इंग्लिश स्पोकेन का क्लास लेने जाते हैं, जिससे बच्चों के भीतर आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सके। उनका मानना है कि आज के परिवेश में हमें अपनी मातृभाषा के साथ-साथ सबसे ज्यादा जरूरत इंग्लिश की है। बड़े घरों के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई करके आगे निकल जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चे अंग्रजी के अभाव में हमेशा पीछे रह जाता है।
शिक्षा के नाम पर सरकार हर साल अरबों रुपये खर्च तो करती है लेकिन रिजल्ट हमेशा फिसड्डी ही रहता है। मीड डे मील जैसी योजना को लागू कर सरकार ने बच्चों का ध्यान शिक्षा से हटाकर खाने की तरफ लगा दिया है, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा दलित और पिछड़े समाज को ही भुगतना पड़ रहा है। दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों में लगातार बढ़ते कारोबार से सरकार की मंशा साफ है कि वह शिक्षा का निजीकरण करना चाहती है और आम आदमी को इससे वंचित कर साम्राज्यवादी व्यवस्था को कायम रखना चाहती है।
यह तस्वीर देश की राजधानी दिल्ली से महज 40 कि.मी. दूर की है। दिल्ली में जहां देश की सारी योजनाएं सबसे पहले लागू की जाती है और विकास के नाम पर अरबों खरबों रुपये पानी की तरह बहाए जाते हैं वहीं इस गांव में विकास के नाम पर एक स्कूल के साथ एक शराब का ठेका मिला है। अमूनन यही स्थिति हरियाणा के सभी गांवों की है।
अपनी इस कार्य योजना को लेकर वीर सिंह पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं और ‘सेन्टर फॉर ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट’ के नाम से एक संस्था बनाकर पूरे देश के गांवों में अपना नेटवर्क स्थापित करना चाहते हैं ताकि लोगों को जागरूक किया जा सके और देश तथा समाज की प्रगति में एक कदम और बढ़ाया जा सके।

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