Tuesday, March 8, 2011

सोहागपुर: पांच साल में तीन मुखिया, फिर भी जनता दुखिया

फतेहाबाद से नाव पर सवार होकर नारायणी गंडक नदी पार कर जैसे ही मैं उस पार पंहुचा तो बीहड़ जंगल सुनसान इलाका दिखाई पड़ा. दूर-दूर तक फैले सन्नाटे और ख़ामोशी के बीच दो लोग दिखाई पड़े. जब पूच्छा की मुझे चक्की सोहागपुर पंचायत जाना है तो उन्होंने उत्सुकत्ता भरी निगाहों से मुझे घूरते हुए मना किया कि वहां मत जाइए.बहुत खतरनाक जगह है. बराबर खून-खराबा होता रहता है. हम लोग बगल के गांव के है फिर भी नहीं जाते हैं, फिर भी नहीं जाते हैं. उनके लाख मना करने पर भी गांव पंहुचा. सबसे पहले मिला, एक छोटा सा टोला. दस बारह झोपड़ियो का. रूका और एक बुजुर्ग व्यक्ति से बाते शुरू की. घर में बुजुर्ग के अलावा उसकी पत्नी थी. उन्होंने खाट बिछाया और खाने की जिद्द करने लगें. कहा यहां दूर-दूर तक कोई दूकान नहीं मिलेगी, इसलिए खाना खा कर ही जाइए. बड़े आवभगत से खाना खिलाया तब बात शुरू की. उसने भी मना किया कि आगे वाले टोले में मत जाइए, वहां खतरा है.

हम यहां बात कर रहे हैं मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड के चक्की सोहागपुर पंचायत कि. जहां पिछले एक दशक से खून कि होली खेली जा रही है. पांच साल में इस पंचायात ने तीन मुखिया देखा, लेकिन यहां कि निर्दोष निरीह जनता को खून के अलावा कुछ भी नहीं मिला. अपनी भौगोलिक बनावट के कारण यहां के लोग आदिम युग में जीने के लिए मजबूर है. पूरब में नारायणी गंडक बहती है तो पश्चिम में छपरा जिले कि तरैया प्रखंड कि सीमा शुरू होती है. बीच में बीहड़ जंगल, सुनसान इलाका, सड़को का अभाव इनकी कठिनाई को बढ़ा देता हैं. नदी के कटाव के कारण यहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. सरकारी रिकार्ड में भले ही ये मुजफ्फरपुर के निवासी है ल्य्किन इनका जीना मरना छपरा जिले के लोगों के साथ ही होता है. करीब 30-40 साल पहले नदी का कटाव इतनी तेजी से हुआ कि इनके घर नदी कि पेटी में समा गए. जो अमीर थे, वो जमीन खरीद कर भीठ पर मकान बना लिए. जो आर्थिक रूप से कमजोर थे, उन्हें जिले की मुख्य धारा से कट कर दियारा में बसना पड़ा.

पांच वार्ड वाले इस पंचयात में करीब चार हजार से अधिक वोटर है. पूरे पंचायात में इक्के-दुक्के मकान ही पक्के हैं. बाकि आबादी झोपडियोंमें ही अपनी जिंदगी की शाम गुजारते हैं. पंचायात में आज तक बिजली नहीं आई. एक पोल तक नहीं गाड़ा गया है. एक मात्र प्राथमिक विद्यालय है जो कई सालों से बंद पड़ा है. माओवादियों और दो गुटों में चली रही लम्बी खूनी लड़ाई के दर से शिक्षक पदाहने नहीं आते हैं. पूरे पंचायत में दर्जन भर लोग मेट्रिक पास होंगे. आगन बाड़ी केंद्र कागज़ पर तो है., पर कभी चला नहीं. कतार में खड़ीं सैकड़ो झोपडियां इंदिरा आवास योजना को अंगूठा दिखा रही है. पंचायत में बमुश्किल 10-12 इंदिरा आवास बने होंगे. वह भी पांच हजार का रिश्वत लेकर. नं. 1 की 60 से अधिक बसंत पार कर चुकी महापाती देवी, पासपति देवी, जगलाल साहनी आज भी विर्द्धावस्थ पेंसन की आस लगाए बैठी है.

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