Friday, March 4, 2011

कृषि क्षेत्र की उपेक्षा ठीक नहीं

  • भास्कर गोस्वामी
  • जब संप्रग सरकार सत्ता में आई थी तो इसने घोषणा की थी कि गरीबी मिटाने की उसकी नीति के मूल में कृषि क्षेत्र की सेहत को सुधारना शामिल है। इसके बाद 11वीं पंचवर्षीय योजना में पिछली योजना के मुकाबले इस क्षेत्र के आवंटन को दोगुना से भी अधिक 50,924 करोड़ रुपये कर दिया गया। पर योजना अवधि के बीच में हुई समीक्षा से यह पता चलता है कि पिछली योजना की तरह इस योजना में भी कृषि की हिस्सेदारी 2.4 फीसदी पर ही बनी हुई है। साफ है कि कृषि की उपेक्षा जारी रही और अब 12वीं पंचवर्षीय योजना से यह उम्मीद की जा रही है कि कृषि क्षेत्र के लिए कुछ किया जाएगा।कृषि क्षेत्र के मौजूदा संकट को दूर करने के लिए दो काम करने की जरूरत है। पहली बात है कृषि को टिकाऊ बनाने की और दूसरी बात यह है किसानों की आमदनी बढ़ाई जाए। आंध्र प्रदेश में ऐसे प्रयोग हुए हैं और सफल भी रहे हैं। इस राज्य में गैर कीटनाशक प्रबंधन के तहत 25 लाख एकड़ जमीन पर खेती की जा रही है। इससे जमीन के बंजर होने की समस्या समाप्त होगी। इससे सबक लेकर 12वीं पंचवर्षीय योजना में कम लागत वाली टिकाऊ खेती को देश भर में बढ़ावा देने का बंदोबस्त किया जाना चाहिए।किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए खेतों में होने वाले काम को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में शामिल किया जाना चाहिए। अभी खेत तैयार करने, बोआई और जुताई जैसे कार्यों को रोजगार गारंटी योजना में शामिल नहीं किया जाता। इन्हें रोजगार गारंटी योजना के तहत लाने से किसानों की आमदनी बढ़ेगी। कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली रियायत सीधे किसानों को दी जानी चाहिए न कि विभिन्न स्रोतों द्वारा किसानों तक पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए।अगले पंचवर्षीय योजना में ग्रामीण क्षेत्र में 15 करोड़ रोजगार पैदा करने के लिए भारी निवेश की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने वाली परियोजनाओं में निवेश करने से गांव में रहने वालों और किसानों की आमदनी बढ़ेगी। इसके अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना में मिश्रित खेती को बढ़ावा देने के लिए जरूरी उपाय किए जाने चाहिए। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी और फसल नहीं होने और कीमतों में उतार-चढ़ाव का सामना करने में किसान सक्षम बनेेंगे।(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं)(प्रस्तुतिः शेखर)

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