Monday, June 15, 2015

नेपाल त्रासदी में भारतीय मीडिया

आशीष कुमारअंशु’/ काठमांडू  (नेपाल)

भारतीय मीडिया को लेकर नेपाल से रही खबरों से यह जाहिर था कि मीडिया में जो कुछ रहा है, उसे देखकर नेपाल के लोग भारतीय मीडिया के प्रति आक्रोश में हैं। क्या नेपाल के लोगों का यह गुस्सा वास्तव में भारतीय मीडिया से था, या भारतीय मीडिया के इलेक्ट्रानिक पक्ष से। जो सबसे पहले खबर पहुंचाने की प्रतिस्पर्धा में खबरों की जगह अपने दर्शकों को नाटकियता परोसने लगा था। नेपाल के बुद्धीजीवियों, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकार और छात्रों की बातचीत से नाराजगी की जितनी वजह सामने आई, वह भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया की तरफ ही इशारा कर रही थी। भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया को लेकर कई सारे कार्टून नेपाल की मीडिया में चर्चा में रहे। एक कार्टून में एक व्यक्ति मलबे के नीचे दबा हुआ है और कैमरा-माइक लेकर खड़ा पत्रकार उससे पूछता है- ‘यहां आप कैसा महसूस कर रहे हैं?’
इसी प्रकार दूसरे कार्टून में मलबे के नीचे दबे एक पीड़ित को सहायता पहंुचाने की जगह, पत्रकार पूछ रहा होता है कि क्या आप हमारा चैनल देखते हैं?


नेपाल में आर्मी और पत्रकार पर करता हुआ एक व्यंग्य बहुत चर्चित हुआ। जिसमें आर्मी मैन की जेब से निकल कर एक पत्रकार उनकी सहायता को कवर कर रहा होता है। इंडियन आर्मी की सहायता के एक प्रत्यक्षदर्षी बताते हैं, इंडियन आर्मी कोई ऐसा राहत कार्य नहीं था, जिसमें उनके साथ आधा दर्जन इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार मौजूद ना हों।
युवा पत्रकार परशु राम काफले कहते हैं- भारत के लोगों से हमारी कोई शिकायत नहीं है। मैंने आईआईएमसी से पढ़ाई की है, जानता हूं कि भारत के लोग खुद इलेक्ट्रानिक मीडिया के सताए हुए हैं।
नेपाल में एक ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। जिसमें कनाडा में रहने वाला एक प्रवासी नेपाल का युवक भारत के एक बड़े खबरिया चैनल की टीवी एंकर को फोन करके पत्रकारिता सिखलाता है। इस बहस में वह एंकर खुद को सही साबित करने की नाकाम कोशिश करती है। 
एक राष्ट्रीय खबरिया चैनल पर दो लोगों को आपस में लड़ते हुए दिखलाया जाता है। इस फूटेज के साथ वॉइस ओवर है कि यह लड़ाई भूकम्प पीड़ितों के बीच राहत सामग्री के लिए हो रही है। जबकि सच्चाई यह थी कि दो मोटरसायकिल की टक्कर हुई थी और दोनों युवक उस टक्कर के बाद आपस में लड़ रहे थे। सोशल मीडिया की वजह से इस तरह की खबरों का खंडन भी तुरंत फेसबुक, वाट्सएप और ट्यूटर पर वायरल हो रहा था। 
भारतीय मीडिया को नेपाल में रिपोर्टिंग करते हुए इस बात का जरा भी ख्याल नहीं रहा कि वे भारत में नहीं नेपाल में हैं। भारतीय चैनल पर नेपाल के लिए दिखलाई गई खबरों के एक एक दृश्य को ना सिर्फ नेपाल के लोगों ने देखा बल्कि उसका विश्लेशण भी किया। 
कई लोगों ने इस बात को कहा कि भारतीय मीडिया को जब नेपाल के जख्म को भरने में मदद करनी चाहिए थी, ऐसे समय में वह इसे कुरेदने का काम कर रहा था। राहत और बचाव के लिए जब सेना का हेलिकॉप्टर आता था, उसमंे आधा दर्जन पत्रकार भर कर आते थे। यदि वे भरकर नहीं आते तो आधा दर्जन अधिक लोगों को राहत मिल पाती। 
नेपाल के सामाजिक कार्यकर्ता और वरिश्ठ पत्रकार लोक कृष्ण भट्टराय ने बताया कि भारतीय मीडिया लगातार इस तरह नेपाल के राहत बचाव कार्य को पेश कर रही थी मानो पूरी दुनिया में किसी दूसरे देश से नेपाल को मदद नहीं मिल रही। जो मदद पा रहा है, वह भारत से रहा है। भट्टराय आगे कहते हैं- यह सच है कि नेपाल की जनता भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हृदय से आभारी है, जिनकी तरफ से सबसे पहला मदद का हाथ हमारी तरफ बढ़ा। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि किसी और देश से हमें कोई मदद नहीं मिली। चीन, जापान, कोरिया, अमेरिका जैसे तमाम देशों से हमें मदद मिली। मदद करने वाले देशों की संख्या 160 से भी अधिक है। 
भूकम्प की तबाही के कुछ ही घंटों में भारतीय वायु सेना के प्लेन आर्मी और एनडीआरएफ ( नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) के बचाव कार्य के लिए प्रशिक्षित जवानों को लेकर पहुंच गया था। भारतीय वायु सेना के 950 लोगों की टीम ने लगभग 400 टन राहत सामग्री को नेपाल पहुंचाया। भारतीय वायु सेना ने ही हिमालय के बेस कैम्प से दुनिया भर के 270 पर्वतारोहियों को सुरक्षित बाहर निकाला। नेपाल के लोगों की शिकायत भारत से नहीं, ना ही भारतीय मीडिया से है। उनकी वास्तविक शिकायत भारतीय मीडिया के इलेक्ट्रानिक सेक्शन से है। उनके नेपाल के प्रति नजरिया और बरताव से है। 
तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के नेता राकेश कुमार मिश्र के अनुसार भारतीय मीडिया ने अपने कवरेज की वजह से नेपाल में अपनी छवि नकारात्मक बना ली थी। लेकिन भारतीय मीडिया की छवि नेपाल में इतनी नाकारात्मक भी नहीं थी, जिसकी उपेक्षा ना की जा सके। राकेश आगे कहते हैं- नेपाल की भारतीय मीडिया विरोधी इस भावना को नेपाल स्थित चीन अध्ययन केन्द्र ने समझा। चीन और पाकिस्तान ने नेपाल में भारत विरोधी माहौल को हवा दी। उनका मकसद था, मीडिया के बहाने नेपाल मंे भारत विरोधी माहौल बनाना लेकिन नेपाल में यह नाराजगी भारतीय मीडिया केन्द्रित बन कर रह गई। इस तरह चीन और नेपाल दोनों अपने मकसद में असफल साबित हुए। 
वैसे इवेन्ट की तरह नेपाल के भूकम्प को कवर कर रही भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया की दर्जनों कहानियां हैं, जो नेपाल के लोग सुना रहे हैं। एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और बच्चे को भूकम्प में खो दिया। उनसे एक पत्रकार पूछती हैं- ‘आपने अपनी पत्नी और बच्चों को खो दिया है। दुख तो बहुत हो रहा होगा?’
यह बताना मुश्किल है कि पीड़ित से वह पत्रकार किस जवाब की उम्मीद कर रही थी। 
कई बार मौन बहुत कुछ कहे जाने से भी अधिक कह जाता है। शयद उसे सुने जाने की सलाहियत अब हम खो रहे हैं। 
रिपोर्टर्स क्लब नेपाल के अध्यक्ष ऋषि धमला बातचीत में भारतीय मीडिया के पक्ष में खड़े नजर आए। बकौल धमला- ‘मीडिया का काम सच दिखाना है। भारतीय मीडिया ने वही सच दिखलाया है। अब नेपाल सरकार को इन रिपोर्ट्स को देखकर अपनी कमियों को समझना चाहिए और उसे दुरुस्त करने पर ध्यान देना चाहिए।’ 
उत्तराखंड आपदा की रिपोर्टिंग और नेपाल प्रकरण में हुई आलोचना के सबक से उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया भविष्य में प्राकृतिक आपदा की रिपोर्टिंग करते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरतेगा। प्राकृतिक आपदा जैसे संवेदनशील विषयों की रिपोर्टिंग सेमशीनी किस्म की पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को दूर ही रहना चाहिए। जिनके पास आम तौर पर गिनती के तीन चार सवाल होते हैं, अवसर कोई भी हो, वे अपना सवाल नहीं बदलते।
बहरहाल, हमें समझना होगा कि कई बार वहअनकहाअधिक बयान कर जाता है, जो आधे घंटे के सवाल जवाब के बाद भी बयान नहीं हो पाता।


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