Saturday, May 30, 2015

यात्रा 01: नक्सलबारी मई 24


आशीष कुमार ‘अंशु'
नक्सल आन्दोलनकारियों के लिए 24 मई की तारिख एक महत्वपूर्ण तारिख है। 1967 के साल में नक्सल आज के रास्ते पर इसी तारिख से चलना शुरू हुआ था।

कानू सान्याल के घर जाता रास्ता



यह संयोग ही था कि बीते 24 तारिख को मैं काकरभिट्टा (नेपाल) में था। वहीं सीपीएम के एक युवा नेता से बात हो रही थी तो उसने इस ऐतिहासिक तारिख की याद दिलाई। वैसे नक्सलबारी से ताल्लुक रखने वाला वह युवक यह बताना नहीं भूला- ‘सीपीएम वाला हूं, एमएल का नहीं।
काकरभिट्टा नक्सलबारी से अधिक दूर नहीं है, सो नक्सलबारी यह सोचकर चला गया कि आज के दिन को वहां के लोग किस तरह याद कर रहे हैं? नक्सलबारी में एक छोटी सी गोष्ठी जिसमें मुश्किल से चालिस पचास लोग होंगे, उनके बीच भाषण का सिलसिला चल रहा था। पन्द्रह-बीस मिनट में जब एक दर्जन से अधिक बार वक्ता ने चारु बाबू - चारु बाबू की रट लगाई तो ना जाने क्यों मुझे यह बात थोड़ी अखर गई। आज का दिन चारु बाबू का होगा लेकिन सिर्फ चारु बाबू का तो नहीं है! 
इस बात का अंदाजा था मुझे कि हाथी घिसा नक्सलबारी से अधिक दूर नहीं होगा। फिर वहां से हाथी घिसा जाना ही बेहतर विकल्प लगा। सोचा कि वहां कुछ लोग मिलेंगे तो उनसे थोड़ी चर्चा की जाएगी। हाथी घिसा की मुख्य सड़क पर उतर कर कानू सान्याल के घर का पता किनारे खड़े एक बुजूर्ग से पूछा। उन्होंने सामने गली से निकलते बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहा, वहां से सीधा चले जाना। बीच में कई सड़कंे बायीं तरफ और दायीं तरफ जाने वाली मिलेंगी लेकिन तुम्हे किसी रास्ते पर मुड़ना नहीं है। कानू सान्याल के घर का रास्ता सीधा ही जाता है। 
बुजूर्ग के बताए रास्ते पर चल कर उस घर तक पहुंचा जहां कानू ने अंतिम सांसे ली थी। वहां ताला लगा हुआ था। आज के दिन भी वहां कोई नहीं था। आज के दिन पूरे नक्सलबारी में आन्दोलन को चारु बाबू की वजह से याद किया जा रहा है और थोड़ी ही दूरी पर कानू बाबू के कमरे में घुप्प अंधेरा पसरा हुआ है।

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