Friday, May 25, 2012

झारखंड के आदिवासी समाज सुनाता है मृत्युदंड की सजा


शैलेन्द्र सिन्हा

झारखंड के आदिवासी समाज में आज भी परंपरागत कानून के अनुसार दोषी को सजा -ए मौत का फरमान सुनाया जाता हैं। संताल परगना में संतालों के परंपरागत शासन व्यवस्था के तहत दिशोम मांझी (सवौच्च अदालत) की बैठक में आरोपी को यदि दोषी करार दिया जाता है तो उसे नक्सली के तर्ज पर खुले मैदान में भारी जनसमुह के बीच सजा सुनाई जाती है। दिशोम मांझी यदि किसी व्यक्ति को बिटलाहा (सामाजिक बहिष्कार) का निर्णय सुनाती है तो उस व्यक्ति को जिंदा जला देने के साथ उसके घरों में आग भी लगा दी जाती है। पंचायत के फरमान के विरूद्व नेता और समाज सुधारकों की नहीं चलती है, दिशोम मांझी के निर्णय को आजतक किसी ने चुनौति नहीं दी है। पंचायत के फरमान पर गोड्डा जिले की दो महिला को जिंदा जलाया गया है। दुमका जिले के रामगढ़ प्रखंड के हेठग्रहण गांव में 30 मार्च 2012 को दिशोम मांझी पंचायत की बैठक में दो लोगों को मौत की सजा देने की घटना ने सभ्य समाज को सोचने पर विवश कर दिया कि विज्ञान के युग में भी हम ऐसे कु्रर फैसले ले सकते हैं। हेडग्रहण गांव में दिशोम मांझी की बैठक में दुमका, गोड्डा और पाकुड़ जिले के लगभग 700 ग्राम प्रधान और ग्रामीण उपस्थित थे। परंपरागत पंचायत व्यवस्था दिशोम मांझी की बैठक न तीन व्यक्ति को परंपरानुसार बिटलाहा का निर्णय लिया और उन तीनों मशः भीम मुर्मू, शंकर किस्कु और बेटका किस्कु को सजा-ए-मौत सुना दी। बैठक में उपस्थित उग्र भीड़ ने आरोपी तीन में से दो को लाठी और पत्थरों से मार डाला, गांव के आरोपी सहित दर्जनों घरों में आग लगा दी गई। एक आरोपी बेटका किस्कू घटना स्थल से किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई और घटना की पुरी कहानी एस पी,दुमका हेमंत टोप्पो को सुनाई। बेटका ने बताया कि हेठग्रहण गांव में मौत की सजा जिसे दी गई, उसमें उसका बेटा शंकर भी शामिल है। इस कांड में बेटका ने अपनी संलिप्तता से इंकार किया है। शंकर को पुलिस ने रामगढ़ थाने में तत्काल रहने का आदेश दिया है। पुलिस को अबतक इस कांड में कोई सफलता नहीं मिली है। पुलिस सिर्फ दिशोम मांझी की बैठक को आहुत करानेवाले आनंद टुडू के विरूद्व प्राथमिकी दर्ज की है। पुलिस प्रशासन को घटना से पहले जुटनेवाली भीडका अंदाजा था,बावजुद इसके कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। हेठग्रहण गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है, मर्द गांव छोड़ चुके हैं। प्रशासन प्रभावित परिवारों के बीच राहत सामग्री दी है। परंपरानुसार दिशोम मांझी की बैठक के पूर्व संताली गांवों में एक डंडा जिसमें सखुआ के पत्ते में तेल लगा होता है, उसे लेकर एक व्यक्ति नगाड़ा बजाता हुआ बैठक की सूचना आस-पास के गांवों को देता है और लोग जुटते हैं। पुलिस प्रशासन कई बार ऐसी घटना को रोकने में विफल रही है। वर्ष 2003 में गोड्डा जिले के महुआसोल-औड़ाटाॅड की घटना दिल दहला देती है जिसमें पंचायत के फैसले के अनुसार दो महिलाओं को जिन्दा जला दिया गया था। झारखंड के संताल परगना में दिशोम मांझी के फैसले सवौच्च न्यायालय की तरह होते हैं, पुलिस भी इस झमेले में नहीं पड़ती, सिर्फ खानापुरी करती है। राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्या डां. लुईस मरांडी ने इस घटना को अमानवीय करार दिया और कहा कि समाज के ऐसे निर्णय से समाज में कटुता बढ़ेगी। विधान सभा में रामगढ़ में दो की हत्या मामला गरमाया, सरेआम पंचायत द्वारा ऐसे फैसले पर चिंता प्रकट की, सरकार कार्यवाही करेगी।

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