अम्बुजेश कुमार/ मिर्जापुर
आप को वो पिंकी याद है, जिसके नाम पर हिन्दुस्तान को आस्कर पर इतराने का मौका मिला था एक तरफ जब सीरी फोर्ट में गणतंत्र दिवस के अवसर पर विदेशी मेहमानों को पिंकी पर बनी आस्कर विजेता स्माइल पिंकी दिखाई जा रही थी तो हमने सोचा की चलो पिंकी के गाँव हो आते है
वहा पिंकी को देख कर उसके चाहने वालो को झटका जरुर लगेगा क्योंकी आस्कर अवार्ड जीतने वाली मिर्ज़ापुर गाँव के रामपुर की पिंकी सोनकर डाक्यूमेंट्री स्माइल पिंकी की मुख्य किरदारा की पढ़ाई छुट गयी है जिसका जिम्मा लखनऊ के एक पब्लिक स्कूल ने लिया था ताकि उसके होठो पर मुस्कान खिली रहे
27 जुलाई 2009 में उसे हरदोई स्थित एलपीएस में केजी में एडमिशन दिया गया उसे १२वी तक मुक्त शिक्षा मिलना तय था एलपीएस के डायरेक्टर सुशील कुमार ने बताया पिंकी की पढ़ाई ठीक से नहीं चल रही है किसी प्रकार वह पहली क्लास में पहुंची लेकिन पिछले नवम्बर में दीपावली के बाद से वह नहीं आयी है उन्होंने यह भी बताया की हरदोई के ही ब्रांच में बसके पिता राजेंद्र कुमार को भी नौकरी दी गया थी लेकिन पिंकी के घर वाके ही उसका भला नहीं चाहते हैं पिंकी के मामा राम सकल उसे समाज में हिरोईन की तरह पेस करते हैं उसके घर वाले पिंकी को स्कूल भेजने के लिए गाड़ी की मांग करते हैं जबकि स्कूल कैम्पस के अन्दर ही पिंकी के पिता को रहने का निवास दिया गया था लेकिन हमेशा ही पिंकी के परिवार से ढ़ेरों लोग आते हैं और पार्टी मांगते हैं पिंकी का परिवार उसी नाम को एनकैश करना चाहता है
पहली नज़र में पिंकी को पहचानना मुश्किल था बनारस से करीब आठ किलोमीटर दूर अहरौरा में रामपूर की घनी पहाडियों के बीच आस्कर विजेता पिंकी को उसके सर पर 20 किलो का बोझा लादे देख कर किसी को भी सदमा लग सकता है कि मुकद्दर ने भी उसके साथ कैसा खेल खेला है दोपहर में जब हम पिंकी के गाँव पहुंचे तो वह घर पर नहीं थी
माँ शिमला देवी अपने दूसरे छोटे बच्चों को सँभालने में लगी थी जबकि पिंकी की बड़ी बहन बर्तन माज रही थी पास में छोटा भाई लालू खेल रहा था पूछने पर पता चला की पिंकी स्कूल गयी है फिर अचानक उन्हें याद आया कि आज स्कूल बंद है फिर बताया गया कि वह कहीं जंगल में खेल रही होगी पूंछा कहा तो कहा पहरी के उस पार कहीं होगी हमने कहा हम ढूंढ़ लेंगे देखा तो ठिठक पड़ी सड़क से करीब दो सौ फिट ऊपर सर पर बोझ लादे वह उतर रही थी साथ में एक और बच्चा था थोड़ा और ध्यान देकर देखा तो हम तकते रह गये अरे! यह तो पिंकी है वह भागने लगी हमने उसे रोक कर पिछली मुलाक़ात की याद दिलायी उसे साब याद आ चुका था पहले थोड़ा सकुचाई लेकिन फिर उसने अपने तक़दीर की रह भटक जाने की असली कहानी सुना डाली
हरदोई से उसे आये एक महीने से ज्यादा हो गया था वंहा मन नहीं लग रहा था क्या के जवाब में उसने कहा कि हमार त लगत रहल लेकिन का बताई हमारे पापा का मन उहा नाहीं लागल सवालों का जवाब ठेठ भोजपुरी में देते हुए उसे कोई हिचक नहीं थी वहां किसी प्रकार की दिक्कत के बारे में पूछने पर उसने कहा कि वहां क्या दिक्कत थी? हमें कौनो दिक्कत नहीं रहल खाना भी मिळत रहल औउर कपड़ो पड़ातो रहली पिंकी के जवाब समाज के सामने कई सवाल खड़े कर रहे हैं
समझ नहीं आ रह था की कटे होंठ का अभिशाप लिए जन्मी इस लड़की की भाग्य की लकीर क्या यही आकर रुक गयी? स्माइल ट्रेन जैसी संस्था का उसे इस सुदूर गाँव में खोज निकालना, आपरेशन के बाद उस पर डाक्यूमेंट्री स्माइल पिंकी का बनना और उसके बाद फ़िल्म का आस्कर अवार्ड जीतना, एक सपने जैसा लगने लगा इस सफलता के बाद भी उसके परिवार की मज़बूरी औउनकी गरीबी को देखकर निशुल्क शिक्षा का प्रस्ताव दिया, उसके पिता को नौकरी दी अब उसके पिता का मन न लगा और वो काम छोड़ कर वापस आ गये हैं पिता की वजह से पिंकी का भविष्य भी संकट में पद गया है अब वह दिन भर जंगल में लकड़ी बीनती है लौट कर बहन के साथ खाना बनाने में मदद के बाद गोबर पठाती है उसने बताया हमारी तो तक़दीर ही बदरंग हो गयी है चाते हुए उसने कहा-
'हम फिर जायिब अमेरिका और फिर कब्बो न आईब '
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