Thursday, October 1, 2015

मुनाफे की खेती

                                आशीष कुमारअंशु


खेती को मुनाफे की खेती बनाने का अर्थ किसी तीसरे हरित क्रांति की मांग नहीं है। हरित क्रांति से इसका अर्थ नहीं लगाना चाहिए क्योंकि वहां उत्पादन के साथ साथ किसानों की लागत भी बढ़ी थी। बाद के समय में पंजाब में हरित क्रांति के साइड एफेक्ट भी पूरे देश ने देखे



पिछले कई सालों से खेती से जुड़ी जो खबर अखबारों में  छपती है, या खबरिया चैनलों पर आती है, आम तौर पर वह कर्ज तले दबे किसान की खबर होती है या फिर किसान आत्महत्या की। इन खबरों से हम जान पाते हैं कि उड़िसा, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में किसान आत्महत्या की स्थिति एक सी है लेकिन कभी उन किसानों पर खबरिया चैनलों की नजर नहीं जाती जो अपनी खेती की वजह से मिसाल बन सकते हैं। समाज के लिए और किसानों के लिए। ऐसे समय में जब मीडिया कों निदान सुझाना चाहिए, वह समस्याएं गिनाने में व्यस्त है। सिर्फ मीडिया को दोष क्यों देना, खेती किसानी से जुड़े तमाम सेमिनार, वर्कशॉप और सिम्पोजियम में वक्ता किसानों की दुर्दशा की ही बात कर रहे हैं और फिर सरकार को कोसते कोसते सभा का समापन हो जाता है। खेती को लेकर देश के किसानों के बीच जो एक समझ पिछले दो तीन दशकों में बनी है, उससे यह साबित हुआ है कि खेती करना घाटे का सौदा है। इसी का परिणाम है कि बड़ी संख्या में किसानों ने खेती से पलायन किया है। अब भी पलायन का सिलसिला रूका नहीं है, यह जारी है। अब समय है कि खेती को मुनाफे की खेती कैसे बनाया जाए, इसके विकल्प और उपाय पर राष्ट्रव्यापी बहस की शुरुआत की जाए। वैसे यहां यह बताना जरूरी है कि खेती को मुनाफे की खेती बनाने का अर्थ किसी तीसरे हरित क्रांति की मांग नहीं है। हरित क्रांति से इसका अर्थ नहीं लगाना चाहिए क्योंकि वहां उत्पादन के साथ-साथ किसानों की लागत भी बढ़ी थी। बाद के समय में पंजाब में हरित क्रांति के साइड एफेक्ट भी पूरे देश ने देखे। किस प्रकार पंजाब में गांव के गांव कैंसर पीड़ित हुए। किस प्रकार कर्ज तले दबे किसानों ने अपनी जमीन बेची और मालिक से मजदूर हुए। इसलिए खेती में जिस क्रांति की बात यहां की जा रही है, उसे आप खेती में मुनाफे की क्रांति नाम दे सकते हैं। 
23 जुलाई 2015 को देहरादून में इंडिया फाउंडेशन फॉर रुरल डेवलपमेन्ट स्टडिज और पत्रिकासोपान स्टेपने मिलकर मुनाफे की खेती, विकल्प और उपाय विषय पर एक अकादमिक बहस की शुरूआत की। इस आयोजन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ साथ उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के किसानों ने हिस्सा लिया। 
मुनाफे की खेती विषय को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आकर्षक विषय बताया। अपने वक्तव्य मंे श्री रावत ने स्वीकार किया कि तकनीक और विकास के इस दौर में हम अपनी खेती को मुनाफे की खेती नहीं बना पाएं हैं। खेती में मुनाफे के लिए इसमें निवेश किया जाना जरूरी है। श्री रावत ने कहा- कृषि विकास दर को 4.5 प्रतिशत पर कैसे बनाए रखा जा सकता है, यह कृषि के नीति नियंताआंे के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। 
जिस प्रकार पूरे देश में भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो रही है। ऐसे में किसान बेबस होकर छोटी छोटी मदद के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है। इस स्थिति से एक किसान को उस वक्त निकाला जा सकता है, जब उसकी खेती मुनाफे की खेती बने। 
हाल मेंइंडियन एग्रीकल्चरल एक्सपोर्ट क्लाइम्बस टू रिकॉर्ड हाईनाम से आई रिपोर्ट बताती है कि भारत का कृषि निर्यात जो 2003 में 5 बिलियन डॉलर का था, वह 2013 में बढ़कर 39 बिलियन डॉलर का हो गया। यदि यूएस डिपार्टमेन्ट ऑफ एग्रीकल्चर द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी सही है तो किसानों के जीवन स्तर में बढ़े इस निर्यात के बाद कोई सुधार देखने को क्यों नहीं मिला?  
खेती को मुनाफे की खेती बनाने के लिए जरूरी है कि खेती करने से पहले किसान अपनी जमीन और उसकी मिट्टी को समझे। वह अपने जमीन की भौगोलिक परिस्थिति को समझे। उसके बाद अपनी खेती के लिए योजना बनाए। भारतीय किसान साल दर साल एक ही तरह की खेती करने का अभ्यस्त हो गया है। उसे अपनी यह आदत बदलनी होगी। उत्तराखंड की बात की जाए तो राज्य में खेती के लिए जो भौगोलिक परिस्थितियां है, वह कहीं और नहीं। इस परिस्थिति में हाई एल्टीट्यूड खेती अच्छी हो सकती है। इस परिस्थिति में उगने वाले फलो, सब्जियों और अन्य उत्पादों की बाजार में भारी मांग है। ऐसे में ऐसी खेती को यहां के किसानों को अपनाना चाहिए। उत्तराखंड में पर्वतीय खेती प्रोत्साहन के अभाव में दम तोड़ रही है, जबकि पर्वतीय खेती से राज्य को भारी लाभ हो सकता है और किसानों को रोजगार भी मिलेगा। 
खेती को मुनाफे की खेती बनाने के संबंध में इफको के विपणन निदेशक रॉय ने कहा कि अधिक यूरिया के इस्तेमाल की वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति लगातार कम हो रही है। इसे लेकर किसानों को सावधानी बरतने की जरूरत है। श्री रॉय की तरफ से किसानों को बताया गया कि वे अपनी मिट्टी की नियमित जांच कराएं और अपनी मिट्टी में जिंक सल्फेट जैसे पदार्थों का इस्तेमाल करें। किसान सस्ता होने की वजह से अपने खेतों में यूरिया का इस्तेमाल अधिक करता है। श्री राय के अनुसार सरकार को यूरिया की सब्सिडी अब कम करके किसानों को जिंक सल्फेट उपलब्ध कराना चाहिए। श्री राय के अनुसार उनकी सहकारी संस्था एक विदेशी कंपनी से इस संबंध में बातचीत कर रही है, जल्द ही उस कंपनी के साथ मिलकर उनकी सहकारी संस्था इसे किसानों को सस्ते दामों में उपलब्ध कराएगी। 
डेमस्क गुलाब, कैमोलिन, जैपनिकज मिंट, लेमनग्रास जैसे दर्जनों सुूगंध फैलाने वाले पौधे हैं, जिनकी खेती से खेती मुनाफे की खेती हो सकती है। डेमस्क गुलाब की ही बात करें, जो झाड़ियों में उगता है। उसके तेल की कीमत चार लाख रुपए प्रति किलो है। डेमस्क गुलाब से उम्दा दर्जे का इत्र तैयार किया जाता है। 
चलते चलते सामली (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) से आए एक किसान का सवाल- एक लीटर तेल में जब नौ सौ दस ग्राम तेल आता हैं फिर एक लीटर दूध में गौ पालकों को एक हजार ग्राम दूध क्यों देना पड़ता है
इस सवाल का संतोषजनक जवाब यह आलेख पूरा किए जाने तक मिल नहीं पाया है। 
बहरहाल, यह समय पलायन का नहीं बल्कि किसानों के खेत में डंटे रहने का है और खेती को मुनाफे की खेती बनाने का है।

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