Saturday, December 10, 2011

मृत्यु का सालाना महोत्सव


मनोज कुमार सिंह/ गोरखपुर
नवम्बर की 24 तारीख को संतकबीर नगर जनपद के चार वर्षीय सौरभ ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज के एपीडेमिक हास्पिटल में दम तोड़ा तो आंकड़ों के लिहाज से वह 590 वां व्यक्ति था जिसकी मौत इस वर्ष इंसफेलाइटिस से हुई है। यह आंकड़े सिर्फ बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर के हैं। अक्टूबर के आखिर तारीख तक भारत सरकार के स्वास्थ्य मत्रालय के अधीन काम करने वाले नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कन्टोल प्रोग्राम ने पूरे देश से एईएस व जेई से होने वाली मौतों के जो आंकड़े जुटाए हैं उसके अनुसार अब तक देश में इस बीमारी से 844 मौतों हो चुकी हैं। इसमें यूपी में सर्वाधिक 462 मौतें हुई हैं। इसमें भी सबसे अधिक पूर्वी उत्तर प्रदेश यानि कि गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, कुशीनगर आदि जिलों में लोग इस बीमारी के शिकार हुए हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश के 16 राज्यों में एईएस और जेई का प्रकोप है जिसमें से चार राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इनमें यूपी, आसम, बिहार और तमिलनाडू हैं।
इस वर्ष बिहार और असोम में बड़ी संख्या में इंसेफेलाइटिस से मौते हुईं हैं। बिहार में मगध क्षेत्र में अखबारी रिपोर्ट के मुताबिक 200 से अधिक मौतें हुई हैं हालांकि सरकारी आंकड़ा अभी 64 की संख्या बता रहा है। इसी प्रकार असोम में अक्टूबर माह तक इंसेफेलाइटिस से 250 लोगों की मौत हुई है। इस तरह हम देखते हैं कि इंसेफेलाइटिस का प्रकोप और प्रसार और ज्यादा है और इसका मुकाबला करने की सरकारी तैयारी उतनी ही कमजोर है। यहां बताना जरूरी है कि डब्ल्यूएचओ के गाइड लाइन के अनुसार दिमागी बुखार से मिलते-जुलते लक्षणों वाली सभी बीमारियों को अब एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्डोम यानि एईएस की श्रेणी में रखा जाता है। जापानी इंसेफेलाइटिस यानि जेई क्यूलेक्स विश्नोई प्रजाति के मच्छर के काटने से होता है और इसके वायरस की पहचान हो चुकी है और इसको रोकने के लिए टीकाकरण बहुत प्रभावी उपाय है। केन्द्र सरकार पिछले पांच वर्ष से प्रभावित राज्यों में जापानी इंसेफेलाइटिस का टीका लगा रही है। यह टीका 1-15 वर्ष के बच्चों को लगाया गया है। चीन से आयात किए गए इस ठीके को लगाने से जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम हुई है। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में इस वर्ष इंसेफेलाइटिस के 3489 मामलों में से 183 में जापानी इंसेफेलाइटिस की पुष्टि हुई है। शेष मामले इंसेफेलाइटिस के अज्ञात वायरसों के हैं जिनकी पहचान नहीं हो पाई है। अभी सिर्फ दो वायरसों इन्टेरोवायरस 76 और काक्सेकी की ही पहचान हो पाई है। विशेषज्ञों के मुताबिक इनमे से अधिकतर वायरस गंदे पानी में पाए जाते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पीने के पानी की जो स्थिति है, उसके देखते हुए इस बीमारी की रोकथाम में बहुत मुश्किले हैं।
अक्टूबर माह के अंत में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज का दौरा किया और यहां भर्ती मरीजों को देखने के बाद कहा कि केन्द्र सरकार इस बीमारी से निपटने के लिए मंत्री समूह गठित करेगी। उनकी घोषणा के मुताबिक मंत्री समूह गठित हो गया है। साथ ही उन्होंने यूपी सरकार पर आरोप लगाया कि वह इंसेफेलाइटिस से प्रभावित इलाकों में लोगों को पीने का शुद्ध पानी मुहैया नहीं करा रही है।
इंसेफेलाइटिस के इलाज को लेकर केन्द्र और प्रदेश सरकार में आरोप-प्रत्यारोप का यह दौर नया नहीं है। यदि सरकारों ने आरोप-प्रत्यारोप में अपनी जितनी उर्जा खर्च की है, उसका इस्तेमाल इस बीमारी से निपटने मे लगाया होता तो कुछ हद तक कामयाबी मिल सकती है। लोगों को याद होगा कि मुलायम सरकार के समय राहुल गांधी ने गोरखपुर का दौरा करने के बाद मच्छरों पर अंकुश लगाने के इरादे से छिड़काव के लिए हेलीकाप्टर भेजने की बात कही थी। हेलीकाप्टर आ भी गया लेकिन राज्य सरकार ने उसका इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया। इसको लेकर ,खूब बयानबाजी हुई। दो वर्ष पहले यूपी में टीकाकरण के लिए आए वैक्सीन रखे-रखे खराब हो गए और उसका इस्तेमाल नहीं किया गया। इसको लेकर मायावती सरकार और केन्द्र सरकार में खूब आरोप-प्रत्यारोप हुए; राज्य सरकार ने एक्सपायरी डेट के टीके भेजने का आरोप लगाया तो केन्द्र सरकार ने कहा कि यूपी सरकार ने टीकों का इस्तेमाल करने में देरी की। यह स्थिति आज भी बनी हुई है जबकि स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है। मुलायम सरकार ने इंसेफेलाइटिस से मरने वालों और विकलाग होने वाले लोगों को मुआवजा देने की घोषणा की थी। एक वर्ष यह मुाअवजा बंटा भी लेकिन मायावती सरकार ने इस मुआवजे पर रोक लगा दी जबकि यह एक बहुत राहत देने वाला फैसला था क्योंकि इस बीमारी से अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के बच्चे शिकार होते हैं। उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं होते।
वर्ष 2005 में गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से 1500 से अधिक मोते हुईं तब जेई के रोकथाम के लिए टीकाकारण का काम शुरू हुआ। उसी समय यह बात सामने आने लगी थी कि जापानी इंसेफेलाइटिस के अलावा जलजनित इंसेफेलाइटिस के मामले अब ज्यादा आ रहे हैं लेकिन सरकार अब जाकर इस बीमारी के प्रति थोड़ी सचेत हुई है। जापानी इंसेफेलाइटिस पर रोकथाम आसान था कि क्योंकि इसके वायरस की पहचान हो चुकी थी और यह भी पता था कि टीकाकरण कर इस बीमारी पर बहुत हद तक अंकुश लगाया जा सकता है लेकिन टीकाकरण का निर्णय 2006 में लिया गया। जापानी इंसेफेलाइटिस का प्रकोप पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1978 से था। जब इसके टीकाकरण का निर्णय लिया गया तब तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार 12 हजार से अधिक बच्चे इस बीमारी से जान गंवा चुके थै। इस तरह की घातक लापरवाही अब यदि जलजनित इंसेफेलाइटिस में की गई तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में तबाही आ सकती है।
एईएस और जेई की रोकथाम के लिए कुछ फौरी और कुछ दीर्घकालीन कार्यवाही किए जाने की जरूरत है। पहला यह कि बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर को इस बीमारी के इलाज के साथ-साथ शोध के केन्द्र के रूप में आवश्यक संसाधानों से लैस किया जाए क्योंकि पूरे देश में सबसे अधिक मरीज इलाज के लिए यहीं आते हैं। वर्तमान समय में यहां इलाज की ही मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। जितनी बड़ी संख्या में यहां पर मरीज आते हैं, उनके लिए बेड व अन्य जरूरी संसाधनों की कमी पड़ जाती है। एक एपीडेमिक वार्ड बना जरूर है लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं होता क्योंकि एक समय में यहां 400 से 500 मरीज यहां भर्ती रहते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मरीजों के इलाज के डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ की जरूरत भी पूरी नहीं है। दूसरे अस्पतालों से कुछ माह के लिए डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ यहां भेजे जाते है। जरूरत पर्याप्त संख्या में डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती का है। इस बीमारी विकलांग हुए बच्चों के पुनर्वास व इलाज के लिए भी ठोस पहल करने की जरूरत है। तीसरा कदम इस बीमारी के प्रति लोगों केा जागरूक करने मे उठाना चाहिए। इस दिशा में एक छोटा कदम एक डाक्टर ने उठाया है। डा आरएन सिंह इंसेफेलाइटिस उन्मूल अभियान के चीफ कैम्पेनर हैं। उन्होंने कुशीनगर जनपद के एक गांव होलिया में लोगों को इंसेफेलाइटिस के प्रति जागरूक करने के लिए गोद लिया। यहां पर इंसेफेलाइटिस के कई मामले सामने आ चुके थे। उन्होंने लोगों को सूर्य की किरणों से पीने के पानी को विषाणु रहित बनाने का तरीका सिखाया। साफ सफाई के प्रति भी जागरूक किया जिसका नतीजा यह हुआ कि तीन वर्ष में इस गांव में इंसेफैलाइटिस को कोई दूसरा मामला नहीं आया है। अब गोरखपुर के जिला प्रशासन ने होलिया के तर्ज पर पांच और गांवों में यही माडल अपनाने की बात कही है। इसके आलावा गांवों में शुद्ध पानी के लिए देसी हैण्डपम्पों को या तो हटा दिया जाना चाहिए या उन्हें और अधिक गहरा किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए एक बड़े अभियान की जरूरत होगी लेकिन अभी सरकार ने इसके लिए कोई पहल नहीं की है जबकि यह कोई मुश्किल काम नहीं है। स्वच्छ शौचालयों का निर्माण व उनका प्रयोग इस बीमारी से लड़ने के लिए बहुत जरूरी है।
ठस दिशा में कुछ प्रयास शुरू हुए है। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एथारिटी के उपाध्यक्ष एम शशिधर रेड्डी ने दो बार गोरखपुर का दौरा किया है। अभी हाल के दौरे में उन्होंने एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। इसमें चार सौ मास्टर टेनरों को शुद्ध पेयजल, सफाई, मच्छरों पर नियंत्रण, खुले में शौच की प्रवृत्ति को समाप्त करने का जागरूकता का प्रशिक्षण दिया गया। ये मास्टर टेनर बाद में आशा, आगनबाड़ी कार्यकत्रियों, एएनएम आदि को प्रशिक्षित करेंगे। ये सभी बाद में गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करेंगे।
जहिर है कि कुछ प्रयास शुरू हुए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जरूरत सभी प्रयासो को समन्वित कर प्रभावी तरीके से लागू करने की है ताकि पूर्वांचल के लिए शोक का बनी यह बीमारी को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके।

No comments:

Post a Comment