Tuesday, October 4, 2011

महाकुंभ की तरह है भारत में जनगणना का आयोजनः सी चन्द्रमौली


भारत की जनसंख्या इस समय संयुक्त राष्ट्र, इंडोनेसिया, ब्राजिल, जापान, बांग्लादेष और पाकिस्तान की जनसंख्या के लगभग बराबर हो चुकी है। इस बार की जनगणना परिणाम के तौर पर कई उत्साहजनक और कई निराष करने वाले परिणाम सामने आए। उत्साहित करने वाली बात यह थी कि इस बार हमारी जनसंख्या वृद्धि की दर पिछले नब्बे सालों में सबसे कम दर्ज की गई, वहीं निराष करने वाली बात यह रही कि यदि इसी प्रकार जनसंख्या की वृद्धि होती रही तो अगले जनगणना परिणाम में हम चीन को पिछे छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देष हो जाएंगे। इस साल आए जनगणना परिणामों पर प्रस्तुत है, महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त, भारत सरकार (रजिस्ट्रार जनरल एंड सेन्सस कमिष्नर आफ इंडिया) डा. चन्द्रशेखर चंद्रमौली से आशीष कुमार ‘अंशु’ की बातचीत :-

साल 2011 की जनगणना परिणाम में पिछले जनगणना की तुलना में कौन सी बातें खास रहीं हैं?
पिछले जनगणना के दौरान जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में थोड़ी कठिनाई आई थी। जिसका सामना इस बार हमें नहीं करना पड़ा। इस तरह 2011 में आए जनगणना से प्राप्त आंकड़े पिछली बार की तुलना में अधिक सटिक हैं। इस बार हमें राज्य सरकारों के साथ स्थानीय जिलाधिकारियों का भी भरपूर यहयोग मिला। प्रत्येक जिलाधिकारी से हमें प्रमाण पत्र मिला कि जनगणना के दौरान सभी क्षेत्रों तक हमारी पहुंच रही। कोई गांव, कस्बा या बस्ती हमारी पहुंच से इस बार बाहर नहीं रही। यह हमारे काम की एक बड़ी उपलब्धि थी।

क्या आपके कहने का अर्थ यह निकाला जा सकता है कि इस बार जो परिणाम सामने आएं हैं, उसमें किसी प्रकार की कमी नहीं है और इस बार की जनगणना सौ फीसदी सफल है?
हमारे देष की आबादी एक अरब से भी अधिक है। इतनी बड़ी आबादी के बीच किया गया किसी प्रकार का सर्वेक्षण शत प्रतिशत ठीक होगा। यह दावा करना किसी के लिए भी कठिन है। निश्चित तौर पर कुछ लोग छूटे होंगे, अलग अलग कारणों से। मेरा अनुमान है कि एक से दो प्रतिशत तक लोग छूटे होंगे। पिछली बार यह आंकड़ा लगभग 2.2 प्रतिशत लोगों का था। अब एक और सर्वेक्षण करेंगे, जिसके बाद हमारे विशेषज्ञों की टीम बता पाएगी कि इस बार हमारे सर्वेक्षण में हमारी पहुंच से कितने लोग दूर रहे।

पहली बार जनगणना के दौरान जीआईएस (ज्योग्राफिकल इन्फार्मेशन सिस्टम) तकनीक का उपयोग किया गया, किस प्रकार का अनुभव रहा?
यह तकनीक बेहद उपयोगी है। इसके माध्यम से मैपिंग और जनगणना कार्यक्रम को लेकर रणनीति बनाने में बहुत मदद मिली। यह गूगल मैप से भी अधिक स्पष्ट तस्वीर उपलब्ध कराता है। इस बार प्रयोग के तौर पर हमने इसका उपयोग देश भर के राज्यों की राजधानी में जनगणना के लिए किया। कुल तैंतीस राजधानियों में यह उपयोग में लाया गया। महंगा होने के कारण इस तकनीक को पूरे देश में लागू तो नहीं किया जा सकता लेकिन हमारी कोशिश रहेगी कि अगली बार राजधानियों के साथ-साथ कुछ और बड़े शहरों को भी जीआईएस के साथ जोड़ा जाए।


प्रत्येक दस सालों में जनगणना परिणाम का आना किसी महाकुंभ की तरह ही है। इसकी तैयारी किस प्रकार से करते हैं?
जनगणना को लेकर जो वास्तविक काम है वह अंतिम के तीन सालों में ही होता है। इसके लिए विशेषज्ञों की टीम यह तय करती है कि इस बार जनसंख्या प्रश्नावली में कौन सा सवाल जोड़ना हैं और कौन सा छोड़ना हैं। सवालों पर अंतिम और मान्य निर्णय गृह मंत्रालय का होता है। सवालों को लेकर गांव और शहरों के अंदर देश भर में एक नमूना सर्वेक्षण भी कराते हैं। जिससे यह समझ में आता है कि किस तरह के सवाल देश भर के लोगों से पूछे जा सकते हैं। सवाल तैयार करते वक्त प्राथमिकता इस बात की होती है कि तैयार सवाल का जवाब सही सही देने में किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार का संकोच ना हो। जिस प्रकार किसी व्यक्ति की आमदनी पूछी जाए तो हो सकता है कि वह सही जवाब ना दे। इसलिए इस तरह के सवाल जनगणना में शामिल ही नहीं किए जाते। इसी प्रकार देश को अलग अलग क्षेत्रों में बांटना और उन सबके मानचित्र को जुटाना भी हमारी तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सारा काम इस बार हमलोगों ने 31 दिसम्बर 2009 तक पूरा कर लिया था।


आप जनगणना की वास्तविक चुनौति किसे मानते है ?
जनगणना की पूरी प्रक्रिया ही चुनौतिपूर्ण है चूंकि इसके साथ देश के विकास से संबंधित बहुत सारी नीतियों के निर्धारण का मामला जुड़ा होता है। जरा अंदाजा लगाइए, इन आंकड़ों को सही सही प्रकार से जुटाया जाए इसके लिए देश भर में 27 लाख लोग अपना समय और श्रम लगा़ते हैं। जिनमें 25 लाख लोगों की जिम्मेवारी तो सीधा-सीधा जनगणना करना होता है और शेष दो लाख लोगों की जिम्मेवारी इस प्रक्रिया पर अलग-अलग स्तर पर नजर रखने से लेकर इस काम में जुटे लोगों को प्रशिक्षित करने की होती है। जनगणना को लेकर दिशा निर्देश हम अठारह भाषाओं में छाप रहे हैं और सोलह भाषाओं में प्रश्नपत्र छपता है। इन कामों में कुल बारह हजार टन कागज लगता है। चैसठ करोड़ फार्म देश भर में भरे जाते हैं। यदि फार्म के वितरण में जरा सी भी चूक हो गई और केरल जाने वाले फार्म उत्तर प्रदेश चले गए तो सोचिए क्या होगा? इसी प्रकार तमिलनाडू का एक तालुका है, जहां तमिल, मराठी, तेलगू और ऊर्दू बोलने वाली जनसंख्या रहती है। अब जिन्हें वहां ऊदू आता है, वे तेलगू नहीं बोल सकते और जिन्हें तमिल आता है वे मराठी नहीं समझते। इस तरह सभी केन्द्रों पर सही प्रकार से फार्म का बंटना चुनौति जैसा ही है। लेकिन इसके लिए हमलोगों ने अपनी क्रिया विधि विकसित की है। जिससे किसी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना कम ही होती है। यह फार्म देश भर में तय सतरह हजार केन्द्रों पर भेजी जाती है।

यह अक्सर सुनने में आता है कि जनगणना के दौरान जो व्यक्ति अपना नाम लिख पाता है, उसका नाम साक्षर के तौर पर दर्ज किया जाता है। क्या आप इस तरह की व्यवस्था से सहमत हैं?
जो व्यक्ति अपना नाम लिख सकता है, उसे साक्षर मानने की बात से किसी की सहमति नहीं हो सकती है। जनगणना के दौरान भी ऐसे लोगों को साक्षर के तौर पर नहीं जोड़ा जाता। साक्षर को लेकर हमारा स्पष्ट मत है कि राईटिंग-रीडिंग-अंडरस्टैडिंग (लिखना-पढ़ना- समझदारी) अच्छी हो, उसके बाद ही उसे साक्षर के तौर पर नामित किया जाता है। इसीलिए सात साल से कम के बच्चे को कभी फार्म में साक्षर नहीं दिखलाया जाता। भले ही वह लिखना पढ़ना दोनों जानता हो।

दुनिया के दूसरे देशों में होने वाले जनगणना के आलोक में यदि हम भारत की बात करें तो इसकी जनगणना की सबसे खास बात क्या है?
यहां के जनगणना की खासियत यह है कि यहां अलग-अलग वर्ग के लिए अलग सवाल नहीं है। सभी वर्गों के लिए एक सा सवाल है। सारे सवाल सामान्य हैं। गांव से लेकर शहर-महानगर तक सभी लोगों से एक ही सवाल यहां पूछा जाता है। सवाल करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि किसी सवाल साधारण हों और जवाब देने वाले को उसके सही जवाब देने में किसी प्रकार के असंमंजस की स्थिति ना बने।

जनगणना के लिए शिक्षकों को लिए जाने के पिछे कोई खास वजह? जनगणना के दौरान गांव में स्कूल बंद होते हैं और बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है, वह अलग? क्या आपके पास इसका दूसरा कोई विकल्प नहीं है?
हम लोगों ने इस विचार किया है। कुछ सुझाव भी आए जैसे एक सुझाव तो यह है कि जिन युवकों के पास काम नहीं है, उन्हें इससे जोड़ा जाए। चूंकि जनगणना के लिए गए युवकों को घर के अंदर प्रवेश मिलता है, इससे विधि-व्यवस्था का सवाल हमेशा खतरा बना रहेगा। यदि इस काम में जनसंख्या नियंत्रण की टीम को लगाए तो जनसंख्या संबंधी उनके पूर्वाग्रह जनगणना में शामिल हो सकते हैं। यदि जल विभाग के लोगों को जोड़े तो जल से संबंधी जानकारी हमारे पास पक्की आएगी, इस बात पर विश्वास करना कठिन है। शिक्षकों को अपने साथ जोड़ने के पिछे सबसे बड़ी वजह यह है कि उनका समाज में बहुत सम्मान होता है। उनका सभी परिवारों के साथ उठना बैठना है और उनके लिए यह विश्वास किया जा सकता है कि यदि कोई शिक्षक हैं तो वे पूर्वाग्रह से मुक्त होंगे। जहां तक छूट्टी की बात है तो हमारे तरफ से दिया जाने वाला काम अधिक नहीं होता। हम तो यही चाहते हैं कि शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ ही शाम का थोड़ा वक्त निकाल कर इस फाॅर्म को भरें। चूंकि छह सौ की आबादी पर एक महीने में एक सौ पच्चीस से डेढ़ सौ फाॅर्म भरने होते हैं। जिन शिक्षकों को अपने घर से दूर सर्वेक्षण के लिए जाना होता है, उनकी संख्या कम है।

जनगणना के नतीजों मंे यदि कुछ संतोषजनक और कुछ असंतोषप्रद नतीजों की बात करें तो वे कौन से परिणाम हैं?
पहली बात तो यह कि अभी जो परिणाम आया है, वह अंतिम नहीं है। यह प्रोविजनल पोपुलेशन डाटा है। पिछले साल अंतिम रिपोर्ट आने में पांच साल का वक्त लगा था। इस बार हमारी कोशिश है कि इसे दो सालों में 2013 तक आप लोगों के बीच ले आएं। जनगणना के शुरुआती नतीजों पर बात करें तो सेक्स रेसियों के बीच जो फासला था, उसका कम होना सबसे बड़ी खुशी की बात है। प्रजनन दर में भी कमी आई है, जनसंख्या के बढ़ोत्तरी की दर जो दर है, उसमें में कमी दिखाई दे रही है। देश में स्त्री और पुरुष दोनों के बीच साक्षरता का बढ़ना वास्तव में बेहद उत्साह बढ़ाने वाला है। वैसे बच्चों के बीच सेक्स अनुपात का बिगड़ना चिन्ताजनक भी है। वैसे इस विरोधाभास को कैसे समझा जाएं कि एक तरफ तो लड़कियों में शिक्षा की दर बढ़ रही है। वे विभिन्न क्षेत्रों में लगातार आगे आ रहीं हैं। सफल हो रहीं हैं। वहीं दूसरी तरफ कन्या भ्रूण हत्याओं का बढ़ना। एक तरफ हम यह कहते हुए नहीं थकते कि स्त्री-पुरुष में भेद भाव बिते जमाने की बात हो गई। हम आगे बढ़ते भारत में जी रहे हैं। जहां दकियानुसी ख्यालों के लिए जगह नहीं है, दूसरी तरफ हमें जो आंकड़ों प्राप्त हुए हैं, वे इन दावों को झूठलाते हैं। आबादी की घनत्व का बढ़ना भी एक बड़ी समस्या है। वर्तमान में प्रति वर्ग किलोमीटर पर लगभग 57 लोग रहते हैं। हमारे पास संसाधन सीमित हैं और जनसंख्या घनत्व के बढ़ने से हमारे जीवन स्तर में गिरावट आना तय है। एक खास बात और 2011 की जनगणना परिणाम मंे पहली बार राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उडि़सा में जनसंख्या विकास दर में कमी दर्ज की गई है।



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