शैलेन्द्र सिन्हा
झारखंड की आदिम जनजाति पहाडिया को अब घर में रोजगार मिलने से उनकी माली हालात में सुधार हो रहा है।साहिबगंज जिले के तालझारी प्रखंड के चमडी गाँव की चिमरी पहाडिन,पति मंगला पहाडिया बताती हैं कि वह अपनी जमीन में सब्जी और धान की खेती करके जिंदगी की गाडी आसानी से चला रही है। वह किचन गार्डेन के द्वारा अपने दो एकड जमीन में हुए पैदावार को बेचकर लाभ कमा रही हैं।उनके जीवन में बदलाव आ रहा है,वह खुशीपूर्वक बताती हैं कि पहले महाजन से उधार लेना पडता था,अब स्थिति वैसी नहीं है।ग्राम प्रधान मंगु पहाडिया भी यह मानतें हैं कि यहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।मंडरो प्रखंड के खेरवा पंचायत के अंबा गाॅव की सूरजी पहाडिन पति सुरेन्द्र पहाडिया आज पशुपालन और मुर्गीपालन व्यवसाय के माध्यम से अपने चार बच्चों का परवरिश कर रही हैं।सूरजी ने बताया कि वह प्याज की खेती करके इस वर्ष अच्छी आमदनी कमाई है।सूरजी आज सफल किसान के रूप में आपने आसपास में जानी जा रही हैं।ग्राम प्रधान मैसा पहाडिया अपने गाॅव के लोगों की उन्नति से खुश हैं,वे बताते हैं कि पहले यह सोच पहाडिया में नहीं थी,वे महाजन के कर्जदार जीवन भर रहते थे,लेकिन अब वे बदल रहें हैं। वे अपनी आमदनी को बैंक में जमा भी करा रहें हैं। पहाडिया के जीवन जीने के तरिके में बदलाव हो रहा है।साहिबगंज जिले के मंडरो,बोरियो और तालझारी प्रखंड के 700 पहाडिया परिवार के 3300 लोग आज खेती कर रहें हैं।आज उनके बीच साक्षरता और स्वास्थय के प्रति जागरूकता बढी है।उनका सामाजिक और आर्थीक दशा में सुधार हो रहा है। आज वे एस एच जी के माध्यम से बचत करना जान गए हैं और बैंक से कर्ज लेकर खेती कर रहें हैं और बैंक के पैसे वापस भी कर रहें हैं। पहाडिया के जीवन में यह बदलाव पाॅच वर्ष पूर्व से हो रहा है,इन तीन प्रखंडों में सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए ईफिकोर नामक संस्था ने पहाडिया के बीच क्षमता निर्माण का प्रयास किया और रोजगार की दिशा में उन्हें मोडा।मालटो समुदाय के बीच उनकी मालटो भाषा में उन्हें समझाने से ऐसा संभव हुआ है।आज सरकार की कई योजनाऐं इसलिए सफल नहीं हुई क्योंकि पहाडिया अपनी भाषा को छोडकर दुसरी भाषा समझ नहीं पाते हैं।शिक्षा का अलख भी पहाडिया के पचास नवयुवकों के प्रयास से संभव हुआ,जो कम पढे लिखे होने के बावजूद समाज के लिए कुछ करना चाहते थे,उन्हें संस्था ने उनकी भाषा में पुस्तके और अन्य सामग्री प्रदान की। अब गाँव में ग्राम विकास समिति का गठन हो गया है,गाॅव के विकास के लिए वे खुद बैठक कर निर्णय ले रहें हैं।पंचायत चुनाव में इसबार पहाडिया के लिए आरक्षित सीटो के कारण अधिक संख्या में वे निर्वाचित हुऐ हैं।उनमें जागरूकता बढी है और वे संतालों की तरह जीना चाहते हैं,संताल आज उनसे कई मामलों में आगे हैं।संताल परगना के चार जिले दुमका,पाकुड,साहिबगंज और गोड्डा जिले में पहाडिया पाये जाते हैं,जिनकी आबादी लगभग 35 हजार है।झारखंड में आठ आदिम जनजाति निवास करती हैं।पहाडिया तीन प्रकार के होते हैं-सांवरिया,माल और कुमारभाग।पहाडिया पहाड पर रहते हैं,आम लोगों की तरह उनका जीवन नहीं होता,वे पहाड में पाये जानेवाले कंदमुल खाकर जीवन जीते हैं,बीमार होने पर वे जडी-बुटी का प्रयोग करते हैं।पहाडिया पहाड की ढलान पर खेती करते हैं,वे बरबट्टी,बाजरा,अरहर और सुतली की खेती कर अपनी जीविका चलाते हैं। वे जंगलों से लकडी काटकर बेचते हैं,कई बार वे वन विभाग के द्वारा पकडे जाने पर जेल भी जाते है,आज भी उन्हें जमीन का पट्टा नहीं दिया गया है।पहाडिया का इतिहास है कि वे कभी राजा हुआ करते थे,अंग्रेजों से लडते हुए प्राण त्यागे थे।आज वे मलेरिया,बेंरन मलेरिया और घेंघ के शिकार हो रहें हैं,उनके गाॅव में पीने का साफ पानी तक नहीं है।प्रसिद्व चीनी यात्री ह्वेन सांग ने अपने यात्रा वर्णन में उनका जिक्र किया है,मेघास्थनिज ने उन्हें मालेर कहा। डा.सर जार्ज अब्राहम गिर्यसन ने अपनी पुस्तक लिंगुइसटीक सर्वे आफ इंडिया में इन्हें द्रविडों का वंशज बताया था।आज पहाडिया में गरीबी,अशिक्षा और रोजगार के अभाव से वे पलायन को मजबूर हैं,ऐसे में ईफिकोर के प्रयास की सराहना की जानी चाहिए।ईफिकोर के प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर रैफन बाखला बताते हैं कि उनका विश्वास जीतने में समय लगा,लेकिन वे अब मुख्यधारा में आना चाहते हैं,उनके जीवन में अदलाव आ रहा है,जो शुभ संकेत है। वे बचत करना सीख गये हें,उनके बच्चों में बदलाव आ रहा है।
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