Friday, October 7, 2011

मुसलमानों में कम हो रही हैं बेटियां


फ़िरदौस ख़ान

हिन्दुस्तानी मुसलमानों में भी लड़कों के प्रति मोह बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मां की कोख में मौत की नींद सुला दिया जाता है. मुस्लिम समुदाय में कुल लिंग अनुपात- 950 :1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 936 :1000 है, जो हिन्दू समुदाय के लिंग अनुपात- 925:1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 933:1000 से बेहतर कहा जा सकता है. हालांकि इस मामले में ईसाई समुदाय देश में अव्वल है- इस समुदाय कुल लिंग अनुपात- 1009 :1000 और बच्चों का लिंग अनुपात- 964:1000 है. औसत राष्ट्रीय लिंगानुपात 933:1000 है.

जम्मू कश्मीर में लिंगानुपात तेज़ी से घटा है. साल 2001 में सात साल के कम उम्र के हर एक हज़ार लड़कों के अनुपात में 941 लड़कियां थीं, अब ये संख्या 859 हो गई है. कन्या भ्रूण हत्या पर चिंता ज़ाहिर करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर कन्या भ्रूण हत्या पर तुरंत रोक नहीं लगी तो भारत में पुरूष समलैंगिक हो जाएंगे.

अरब देशों में पहले लोग अपनी बेटियों को ज़िदा दफ़ना देते थे, लेकिन अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद ने इस घृणित प्रथा को ख़त्म करवा दिया. उन्होंने मुसलमानों से अपनी बेटियों की अच्छी तरह से परवरिश करने को कहा. लेकिन बेहद अफ़सोस की बात है कि आज हम अपने नबी की बताये रास्ते से भटक गए हैं.

एक हदीस के मुताबिक़ पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : "जिस की तीन बेटियां या तीन बहनें, या दो बेटियां या दो बहनें हैं, जिन्हें उस ने अच्छी तरह रखा और उन के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहा, तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा." (सहीह इब्ने हिब्बान 2/190 हदीस संख्या : 446)

एक अन्य हदीस के मुताबिक़ "एक व्यक्ति अल्लाह के पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे व्यवहार का सबसे अधिक हक़दार कौन है ? आप ने कहा: तेरी मां, उसने कहा कि फिर कौन ? आप ने फ़रमाया : तुम्हारी मां, उस ने कहा कि फिर कौन ? आप ने फ़रमाया: तुम्हारी मां, उस ने कहा कि फिर कौन? आप ने कहा : तुम्हारे पिता, फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 5626, सहीह मुस्लिम हदीस नं.: 2548)

इस्लाम ने महिला को एक मां, एक बेटी और एक बहन के रूप में आदर और सम्मान प्रदान किया. अल्लाह तआला ने इसका ज़िक्र करते हुए क़ुरआन में फ़रमाया है : "उन में से जब किसी को लड़की होने की सूचना दी जाए तो उस का चेहरा काला हो जाता है और दिल ही दिल में घुटने लगता है. इस बुरी ख़बर के कारण लोगों से छुपा- छुपा फिरता है. सोचता है कि क्या इस को अपमानता के साथ लिए हुए ही रहे या इसे मिट्टी में दबा दे. आह! क्या ही बुरे फ़ैसले करते हैं." (सूरतुन-नह्ल : 58-59)

और जब (अर्थात् परलोक में हिसाब-किताब, फ़ैसला और बदला मिलने के दिन) ज़िन्दा गाड़ी गई बच्ची से (ईश्वर द्वारा) पूछा जाएगा, कि वह किस जुर्म में क़त्ल की गई थी’ (81:8,9)

मुसलमानों में बढ़ती दहेज प्रथा ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है. यूनिसेफ़ के सहयोग से जनवादी महिला समिति द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दहेज के बढ़ रहे मामलों के कारण मध्य प्रदेश में 60 फ़ीसदी, गुजरात में 50 फ़ीसदी और आंध्र प्रदेश में 40 फ़ीसदी लड़कियों ने माना कि दहेज के बिना उनकी शादी होना मुश्किल हो गया है. दहेज को लेकर मुसलमान एकमत नहीं हैं. जहां कुछ मुसलमान दहेज को ग़ैर इस्लामी क़रार देते हैं, वहीं कुछ मुसलमान दहेज को जायज़ मानते हैं. हालत यह है कि बेटे के लिए दुल्हन तलाशने वाले मुस्लिम वाल्देन लड़की के गुणों से ज़्यादा दहेज को तरजीह (प्राथमिकता) दे रहे हैं. हालांकि 'इस्लाम' में दहेज की प्रथा नहीं है. एक तरफ जहां बहुसंख्यक तबक़ा दहेज के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहा है, वहीं शरीयत के अलमबरदार मुस्लिम समाज में पांव पसारती दहेज प्रथा के मुद्दे पर आंखें मूंदे बैठे हैं.

दहेज की वजह से मुस्लिम लड़कियों को उनके पैतृक संपत्ति के हिस्से से भी अलग रखा जा रहा है. इसके लिए तर्क दिया जा रहा है कि उनके विवाह और दहेज में काफ़ी रक़म ख़र्च की गई है, इसलिए अब जायदाद में उनका कोई हिस्सा नहीं रह जाता. ख़ास बात यह भी है कि लड़की के मेहर की रक़म तय करते वक़्त सैकड़ों साल पुरानी रिवायतों का वास्ता दिया जाता है, जबकि दहेज लेने के लिए शरीयत को 'ताक़' पर रखकर बेशर्मी से मुंह खोला जाता है.

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