अविनाश वाचस्पति
सरकार को एक ई मेल मिलती है और कईयों की नींद उड़ जाती है जबकि उनमें से बहुतेरे ऐसे होते हैं जिन्हें नींद आती नहीं है पर वे भी यही अहसास कराते पाए जाते हैं कि उनकी नींद उड़ गई है। अब उड़कर कहां गई है, यह तो कोई नहीं जानता परंतु वे उस नींद को इस हालिया मिली ई मेल में तलाशने में लग गए हैं। ई मेल में खबर यह है कि इस बार पुतलों ने विद्रोह कर दिया है। जबकि इसमें विशेष यह है कि रावण के पुतलों ने नेताओं के मुखौटे पहनने से साफ मना कर दिया है। दशहरा नजदीक है और उससे नजदीक रामलीला हैं। इसलिए इस आशय का ई मेल कई रामलीला कमेटियों को मिला है। सरकार का रामलीला विभाग इस जानकारी को जुटाने में लग गया है कि पुतलों के नाम पर खाते खोलकर कौन यह कार्य कर रहा है या पृथ्वीलोक से इतर लोकों में भी इंटरनेट, फेसबुक इत्यादि की सुविधा मिलनी शुरू हो गई है। मेल में साफ चेतावनी दी गई कि अगर मेरे चेहरे पर कपिल, मनीष, राहुल, कनिमोझी, कलमाड़ी इत्यादि नेताओं के मुखौटे पहनाए गए, तो हम नहीं जलेंगे। नेताओं के इतने बुरे दिन आयेंगे, ऐसी कल्पना खुद इन पुतलों ने भी नहीं की होगी, इसलिए रावण की इन ई मेलों को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। देश भर में सर्वत्र रामलीला आयोजकों के बीच गहन चिंता व्याप्त हो गई है। जबकि राजधानी में आक्रोश जाहिर करने के लिए सामान्य तौर पर नेताओं के पुतले खूब फूंके जाते रहे हैं। परंतु हालिया बुरी स्थिति इस बार नेताओं के तिहाड़ में अड्डा जमाए जाने के कारण उत्पन्न हुई, लग रही है।
मेल में राहत की खबर यह है कि महंगाई, भ्रष्टाचार, बेईमानी के मुखौटे पहनाने पर छूट दी गई है। जिससे रावण दहन के अवसर पर पुतलों पर समाज में व्याप्त बुराईयों का दमन भी किया जा सके। मेल में यह भी उल्लेख है कि यदि महंगाई, भ्रष्टाचार, बेईमानी के पुतलों के चेहरों की कल्पना करने में सर्जकों का दिमाग चेतना शून्य जैसा महसूस कर रहा हो तो वे निस्संकोच हमें जानवरों और पक्षियों यथा कुत्ते, गधे, उल्लू, सियार, बंदर, बिल्ली, गिरगिट जैसे प्राणियों के मुखौटे पहना सकते हैं। इस पर हमें कतई एतराज नहीं होगा। अभी तो इस बात पर विचार किया जा रहा है कि जब इन सब बुराईयों का उद्गम नेताओं से ही होता है। फिर भी रावण के पुतलों ऐसे मुखौटे पहनने से इंकार करने में, कहीं नेताओं की मिलीभगत ही तो नहीं है। वैसे सरकार इस फर्जीवाड़े पर रोक लगाने के लिए कमर कस चुकी है। एक सलाह पर अमल करते हुए यह तय किया गया है कि पुतलों की या तो आंखें ही नहीं बनाई जायेंगी और अगर अंधे पुतलों से जनमानस में रोष की स्थिति पैदा होती दिखी, तो उस स्थिति से निपटने के लिए काले चश्मे तैयार रखे जाएंगे और सभी पुतलों को उन्हें तुरंत एक अध्यादेश जारी कर, कानून बनाकर पहना दिया जाएगा। जिससे बिना किसी विरोध के पुतलों पर चश्मा चढ़ाने का कार्य निर्विघ्न पूरा हो सके। जैसा सलूक आज तक नेता लोग अपने वोटरों की आंखों के साथ करते रहे हैं। सरकार के भीतर से यह खबर लीक न हो सके और न ही विकीलीक्स इसकी जानकारी पाकर चीख उठे, इसे नितांत गोपनीय रखने की व्यवस्था कर ली गई है। इसी के चलते यह व्यंग्य आपको अक्टूबर माह में पढ़ने को मिल रहा है। अब पुतलों को बुत समझने के लिए लद गए, समझ लीजै।
जबकि आपको यह भी समझ लेना चाहिए कि तितारपुर दिल्ली में रावण के पुतलों का बाजार सज चुका है। 5 सितम्बर से पुतले बनाने का कार्य जोरों पर है। अब तक 5000 पुतले तैयार हो चुके हैं, जिन्हें गाजियाबाद, गुड़गांव, फरीदाबाद, सोनीपत, पानीपत, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में जलाने के लिए हमेशा की तरह ले जाया जाने लगा है। वैसे भी पुतलों को घर के अंदर या छत के ऊपर तो बनाया नहीं जा सकता और न ही इनको स्टेडियम के अंदर जलाया जाता है। यह सब नेक कार्य खुले में संपन्न होते हैं। आप तो यह भी नहीं जानते होंगे कि पुतले बनाने के लिए बांस असम और केरल से दिल्ली लाया जाता है। बांस भी सख्त और मुलायम किस्म का होता है। मुलायम बांस से 20 फुट तक के पुतले और सख्त बांस से 40 फुट और बड़े पुतले बनाए जाते हैं। इतने पुतले बन चुके हैं कि अभी से पुतलों के लिए जगह कम पड़ने लगी है। आप अगर तितारपुर से गुजरे होंगे तो आपने देखा होगा कि विभिन्न विशालकाय पुतले मेट्रो लाइन के नीचे और स्टेशन के नीचे डेरा डाले हुए हैं। पिछले 35 सालों से पुतले बनाने का यह कार्य यहां पर किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इस बार बच्चे पुतले बनाना देखने के साथ, कच्चा सामान जैसे बांस, स्टील की तार, धोती, कागज, पेंट पटाखे खरीद कर साथ ले गए हैं और उन्होंने भी इस कला में अपने हाथ आजमाए हैं। आपको मौका मिले तो अपने पड़ोस के पुतलों को एक नए नजरिए से देखने की कोशिश अवश्य कीजिएगा।
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