Friday, October 26, 2012

अनुशासित आत्मनिर्भरता की पहल

राजेन्द्र सिंह
ग्राम स्वराज की शुरूआत जीवन में प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधन से और  जीवन में अनुशासन से शुरू होती है। ग्राम स्वराज में वैसी शिक्षा हो जो समाज के काम की हो, गांव के काम आए। अभी जो शिक्षा दी जा रही है, वह गांव के काम की नहीं है। बल्कि गांव के पढे़- लिखे बच्चे कामजोर हो जाते हैं 

ग्राम स्वराज का अर्थ है कि गांव अपने अंदर के स्वराज और बाहर के स्वराज का अनुभव करें  और उसके बाद अपनी संगठन शक्ति  से  गांव के स्वालबंन से, अपने गांव का पानी, अपने गांव का खाद और बीज बना सके और गांव में प्रत्येक आदमी को रहने के लिए जमीन और घर मिल सके,  खाने के लिए रोटी मिल सके और पीने के लिए पानी मिल सके उसके बाद ही गांव के हर एक आदमी केे अंदर  स्वराज जगेगा। और यह अंदर का स्वराज ही बाहर के स्वराज की स्थापना करता है।

 एक होता स्वराज और एक होता है सुराज।  स्वराज की शुरूआत अपने अंदर से करनी होती है और सुराज वह होता है जिस अवस्था में  सबको बराबरी, समता सादगी शामिल हो। आज के समय गांव में और समाज में जिस तरह की नकारात्मकता दिखाई दे रही है, उसके चलते ग्राम स्वराज की कल्पना करना मुश्किल लगता है। लेकिन इस मुश्किल के बावजूद कोई दूसरा रास्ता है भी नहीं, हमें यदि समाज को अच्छे काम में लगाना है तो  समाज को अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराकर ही यह संभव होगा। यदि गांव में ग्राम स्वराज नहीं होगा तो गांव में अराजकता ही होगी। आज जिस तरह गांवों में अराजकता बढ़ रही है, चूंकि अब गांव के लोगों ने मिलकर, संगठित होकर अपने गांव के भले के लिए  सोचना छोड़ दिया है। इसी का लाभ उठाकर राजनैतिक दलों ने गांव को बांट दिया है। गांव पूर्णतया बंट गए हैं। राजनैतिक दलों के कारण ही ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने  में संकट है, लेकिन आपने देखा होगा राजस्थान में लोगों ने जिनका अपना पानी नहीं था, खेती नहीं थी, जंगल नहीं था, उनका यह सब हुआ। जिन क्षेत्रों में हम काम कर रहे हैं, वहां के जंगलों में ग्रामीणों का अनुशासन चलता है, इतना बड़ा सरिस्का का जंगल बर्बाद हो गया था, माइनिंग के कारण जंगल बंट गए थे, जंगली जानवर खत्म हो गए थे, टाइगर खत्म हो गए थे, तो लोगों ने खड़े होकर इस काम को दोबारा स्थापित करने की कोशिश की है, सरिस्का में भी सामुदायिक संबंध गहरा हुआ है, इसलिए मुझे लगता है ग्राम स्वराज की शुरूआत जीवन में प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधन से और  जीवन में अनुशासन से शुरू होती है। 
ग्राम स्वराज में वैसी शिक्षा हो जो समाज के काम की हो, गांव के काम आए। अभी जो शिक्षा दी जा रही है, वह गांव के काम की नहीं है। बल्कि गांव के पढे़-लिखे बच्चे कामजोर हो जाते हैं । उनका काम करने का मन नहीं रहता है, तो ऐसी शिक्षा जो काम करने से रोकती हो ऐसी शिक्षा जो कामचोर बनाती हो, ऐसी शिक्षा वह शिक्षा नहीं होती, जिससे समाज कारगर बनता है। गांव का काम करते-करते देश और देश की व्यवस्था तंत्र के बारे में सोच सकते हैं। वह हम इसलिए सोच सकते हैं क्योंकि  हम गांव में अपने हाथों से काम करते हैं, गांव को हम विकास की राह पर चलाना चाहते हैं, इसी रास्ते पर गांव के बच्चे, गांव के लड़के-लड़कियां चले और गांव को ग्राम स्वराज की राह पर चलाए तो उस पढ़ाई में से ही उनका आगे बढ़ने का रास्ता खुल जाता है। ग्राम स्वराज में बड़ा आर्थिक माडल होता है, समता का, बराबरी का जिसमें से गांव के लोगों का गांव के संसाधनों पर मालिकाना और एक तरह से उन साधनों के साथ संबंध दिखता है। उदाहरण के तौर पर गांव का तालाब गांव का साझा है तो सारा गांव उसे अपना माने और उसकी रक्षा सुरक्षा करें। अब गांव के तालाब यदि ठीक भी हो जाए तो गांव खड़ा होकर उसका प्रबंधन नहीं करता। लोग उसमें कचरा डालते हैं । जब तक गांव में यह भाव नहीं आएगा कि गांव की जो साझी संपदा है, साझे काम है। उनमें हम गलत कामों को रोकेंगे। एक तरफ गलत कामों को रोकना और दूसरी ओर अच्छे कामों को करना तो उससे गांव स्वराज का रास्ता खुलेगा। 
(लेखक मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता है)




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