Saturday, October 6, 2012

जोड़ने होंगे गाँव शहर के सम्बन्ध


अनुपम मिश्रा

आज शहरों में रहने वाले लोगों को ग्राम स्वराज की क्या जरूरत आन पड़ी लेकिन इस बारे में कुछ बात और कुछ संवाद गांव और शहर के बीच होना ही है तो ढंग से होना चाहिए।
आज शहर में रहने वाले ज्यादातर लोग थोड़ा सा पिछे हटकर अपना इतिहास देखें तो पता चलेगा कि हममें से ज्यादातर शहरी लोग पचास-सौ साल पहले किसी गांव से ही निकल कर यहां आए होंगे। वैसे तो शहरों के रेलवे स्टेशनों में आने वाली दिन भर की रेलगाडि़यों से लोग लगातार गांव से शहर में आ रहे हैं। लेकिन जिनको ऐसी कोई गलतफहमी है कि वे शहर में ही रहते आए हैं, उन्हें भी अपना इतिहास पलट लेना चाहिए।
कुछ समय पहले तक हमारे गांव और शहर एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे, इन दोनों में छीना-झपटी वाला कोई संबंध नहीं था। शहर भी ऐसे बड़े और भीमकाय नहीं हुआ करते थे। उनकी अपनी जरूरतें थीं, लगभग उसी ढंग से पूरी होती थीं जैसे कोई गांव अपनी जरूरत पूरी कर लेता है। 
बताया जाता है, अंग्रेजों के आने से पहले दिल्ली मंे कोई 800 तालाब होते थे, इसका मतलब है, कम से कम पानी के मामले मंे दिल्ली को गांव का पानी नहीं चुराना पड़ता था। यह चोरी वाला मामला ही हमें ग्राम स्वराज और नगर स्वराज पर सोचने पर मजबूर करेगा। 
देश के कोई पांच लाख गांव यदि देश के कुछ 10-12 महानगरों और एक-डेढ़ हजार नगरों की सेवा में लग जाएंगे तो इससे ना गांव बचेगा और ना ये शहर जिनके लिए यह सब किया जा रहा है। 
स्वराज का मतलब गांव और शहर दोनों के लिए एक से महत्व का होना चाहिए। दोनों एक दूसरे की इज्जत करें, ध्यान रखें, तभी दोनांे का अस्तित्व बना रह सकेगा।
बहुत से सामाजिक चिन्तकों ने ग्राम स्वराज पर बहुत कुछ सोचा-विचारा है और उसको सफल बनाने के लिए कई तरह के प्रयास और आन्दोलन भी चलाएं हैं लेकिन हम पाते हैं कि इन सबके बावजूद ना आज गांव बच पा रहे हैं। ना शहर। दोनों अपनी आजादी का कुछ हिस्सा रोज खोते जा रहे हैं। 
एक तरह से कहें तो आज का दौड़ भगदड़ में पड़ी सभ्यता का दौड़ है। गांव की कीमती जमीन, सरकार, उद्योग और शहर तीनों मिलकर कौडि़यों के दाम पर खरीदना चाहते हैं। लेकिन उस पर जो वे विकास करते हैं, उसके पास पानी और बिजली की कमी आ जाती है। हमारे सबसे चमकीले दिखने वाले शहर, अपनी आजादी की बात नहीं कर सकते, सब किसी ना किसी परेशानी से गुजर रहे हैं। 
ठसलिए ग्राम स्वराज की अच्छी योजना, बातचीत हमें एक ऐसी जगह तक ले जाएगी, जहां से हम अपना गांव भी सुधार सकेंगे और उसी अनुपात में अपने शहरों को भी थोड़ा बेहतर बना सकेंगे। 

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