Wednesday, September 14, 2011
‘अन्ना हमारे’ के तेवर बरकरार : भ्रष्टाचार तेरा शुक्रिया बारंबार
अविनाश वाचस्पति
तू जो न होता तो इतनी सुर्खियों में ‘अन्ना हमारे’ न होते। शुक्रिया, तूने कराया हमें अन्ना का दीदार। इसलिए अन्ना की ओर से हम करते हैं तेरा आभार। समाज में सबकी जरूरत है। सब एक दूसरे पर अवलंबित हैं। एक के होने से दूसरा है और दूसरे के होने से तीसरा, यही क्रमिक कड़ी है। जिस प्रकार तेरे आगे-पीछे बिना खाए-नहाए पड़े थे ‘अन्ना हमारे’। वे हम सबके प्यारे हैं और हम अन्ना के दुलारे हैं। अगर तू ही न होता, वे किसके पीछे पड़े होते। इधर घपले-घोटाले खूब हुए हैं। खूब चर्चाएं हुई हैं। चैनल और अखबारों में तमाम सुर्खियां बनी हैं। काला धन तो लोकतंत्र का जोकतंत्र शुरू से ही चुनावों में खुलकर बना रहा है। इधर संचार क्रांति के आगमन के बाद 2 जी, 3 जी और 4 जी घोटाले रंग बिरंगी सुर्खियों में हैं। कामनवेल्थ हुए या हुई तो सबने खूब तरी पी और मलाई काटी, जिससे सीएम तक नहीं बच पाईं हैं।
जहां समस्याएं होती हैं, वहां संभावनाएं भी होती हैं और समाधान भी निकल ही आते हैं। समस्याएं न हों तो संभावनाएं कहां से आएंगी और किनका समाधान किया जाएगा। इधर धन उधार धन, अथाह धन अपार धन। सबका मन धन में लगा हुआ है। मंदिरजी भी अछूते न रहे। न बाबा रहे और न रहे स्वामी और साईं। सबके कारनामे सामने आए। सब धन में लिप्त पाए गए। धन के प्रभाव से कोई न बच सका। वो तो सिर्फ ‘अन्ना हमारे’ निराले हैं उनका ही बूता है कि धन की उनके आगे एक न चली। धन चाहे वो काला रहा हो या काले मन वाले का गोरा धन हो। उनकी नहीं चली तो तेरी कैसे बहती रे, भ्रष्टाचार तेरी नाव। बिना पानी के कैसे आगे बढ़ती। पानी में बढ़ना-डूबना भी हो सकता है।
समझ यही आता है कि दुनिया गोल है या सबने लुढ़क कर गोल कर दी है। इसलिए संसद ने ही गोल बनकर कौन सा गुनाह कर लिया। जहां से चलो वहीं लौट कर आ जाओ। चल रही है तो सिर्फ महंगाई की, अब सोने की चल रही है तो शेयरों की रूक गई। नतीजा, सेंसेक्स रोज ही डूबा-डूबा उदास सा रहने लगा है। यह भी‘अन्ना हमारे’ से डर का नतीजा है। सेंसेक्स में भी कभी किसी टटपूंजिया कंपनी के शेयर शेर हो जाते हैं कि विश्वास जम जाता है जबकि इनमें ही भीतर ही भीतर घपलों का अथाह समुद्र ठाठें मार रहा है।
सदा सोने के रेट ही चढ़ने चाहिए जबकि किसी बेनामी सी कंपनी के रेट इतने बढ़ा दिए जाते हैं कि सोना अपराधबोध से ग्रस्त हो जाता है। जिससे यह साफ जाहिर है तेरा आशियाना वहां पर भी है। सिर्फ आफिसों,स्कूलों, निगम कार्यालयों, प्राधिकरण, सोसाइटियों में ही नहीं, हर खास-ओ-आम भी तेरे असर से अछूता नहीं रहा है, जिसकी जब जितनी चलती है, चला लेता है। जहां मौका लगता है, जनता भी पीस लेती है, नहीं तो पिसना तो मजबूरी है ही। दम जनता का निकल रहा है। अपना दम बचाने के लिए जब जनता ‘अन्ना हमारे’,‘अन्ना हमारे’ करती बाहर सड़कों पर उतर आई जिससे विजय की गूंज उठी शहनाई है। पर इसी पूरी प्रक्रिया में सरकार के कपड़े दर कपड़े उतरते जा रहे थे, और सरकार अपने को नंगा होता महसूस कर रही थी, वो तो शुक्र मनाइये कि अंत समय पर बुद्धि, बुत बनने से बच गई।
आसाराम बापू, जो कि भीड़ खींचने में सर्वोपरि हैं, वे भी इस भीड़ को देखकर हतप्रभ हैं। वे जहां सत्संग करते हैं, भीड़ सिर्फ वहीं होती हैं और ‘अन्ना हमारे’ की भ्रष्टाचार से अहिंसक जंग से प्रदेश, देश, विदेश, नुक्कड़, गली, चौराहे तक जनता से लबालब भर गए थे। यह सच है कि ‘अन्ना हमारे’ ने अनशन तोड़ दिया है, लेकिन देखना एक दिन तुम्हें भी इससे बुरी तरह तोड़ देंगे। जाहिर है कि जनता जब जाग जाती है तो किसी भी वैरायटी का बकरा हो, उसकी अम्मा खैर मना ही नहीं सकती है। बहरहाल, अब तेरी खैर नहीं है। जो हाल बकरे की अम्मा का कहानी में होता है, लग रहा है वही हाल तेरी अम्मा का हो लिया है। आज तो अपनों से ही डर लग रहा है। अपनों से ही आदमी अधिक संभल कर चल रहा है। सबसे अधिक धोखा भी वहीं मिल रहा है। इसीलिए तो समाज में तेरी फसल उपजाऊ है, तू ही सबसे ज्यादा कमाऊ और खाऊ है।
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