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Tuesday, March 8, 2011

वे जगा रही हैं साक्षरता का अलख

  • रीता तिवारी/ पुरुलिया (पश्चिम बंगाल)

इन युवतियों को देख कर इस बात का अहसास तक नहीं होता कि वे भीतर से इतनी मजबूत हैं. लेकिन उनका काम ही उनके भीतर भरे नैतिक साहस का सबूत है. ऐसा नहीं होता तो माता-पिता और समाज के परंपरागत बंधनों का घेरा तोड़ कर वे पूरे इलाके में साक्षरता का अलख नहीं जगातीं.


इन दुबली-पतली किशोरियों के साहस का नमूना देखना हो तो देखना है तो पुरुलिया आना चाहिए. पुरुलिया यानी झारखंड से लगा पश्चिम बंगाल का एक जिला. बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर बसा बाऊल संगीत का घर. देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार पुरुलिया में साक्षरता की दर भी बेहद कम है. गरीबी और अशिक्षा की वजह से जिले में बाल विवाह आम हैं. लेकिन अफसाना खातून नामक 12 साल की एक युवती ने इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ आवाज उठाते हुए साक्षरता की जो चिंगारी जलाई थी, वह अब शोला बनती जा रही है. यही वजह है कि जिले में अब गरीब और पिछड़े तबके की युवतियां भी बीड़ी बनाने की बजाय स्कूलों में पढ़ाई का ककहरा सीखती नजर आ रही हैं.
पुरुलिया के झालदा दो नंबर ब्लाक तो साक्षरता के मामले में देश में सबसे पिछड़ा है. वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक, यहां साक्षरता दर महज 18.4 प्रतिशत है. जबकि पश्चिम बंगाल में यह औसत 74 प्रतिशत है. गरीबी के चलते पुरुलिया के ज्यादातर गांवों में लोग अपने छोटे बच्चों को बीड़ी बनाने के काम में लगा देते हैं. नतीजतन वे ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाते.
पुरुलिया शहर में बाल विवाह की प्रचलित परंपरा को चुनौती देकर अपने जैसी किशोरियों को स्कूल की राह दिखाने वाली अफ़साना खातून अब जिले में एक रोल मॉडल बन चुकी है. रेलवे की पटरियों के किनारे बसी बस्ती में एक कमरे के अपने झोपड़ीनुमा मकान में रहने वाली अफसाना का दुबला-पतला शरीर देख कर पहली नजर में इस बात का अहसास तक नहीं होता कि इसके भीतर नैतिक साहस कूट-कूट कर भरा है. फिलहाल पांचवीं कक्षा में पढ़ रही अफसाना के पिता फेरी लगा कर सामान बेचते हैं.
अफ़साना ने बाल विवाह का विरोध कर स्कूल का बस्ता थामने की पहल की तो रेखा कालिंदी और सुनीता महतो जैसे नाम भी उसके साथ जुड़ गए. यह तीनों पहले बाल मजदूर थी. रेखा और सुनीता बीड़ी बनाती थी तो अफ़साना सोनपापड़ी
(मिठाई) बनाती थी. अब तीनों को केंद्र
सरकार की राष्ट्रीय बाल मज़दूर परियोज़ना के तहत दोबारा स्कूलों में दाखिल कराया गया है.
पुरुलिया के झालदा-2 ब्लाक में रहने वाली रेखा कालिंदी बताती है, ‘मां-पिताजी मेरी शादी करना चाहते थे. लेकिन मैं पढ़ना चाहती थी. इसलिए मैंने मना कर दिया. मां की दलील थी कि तुम पढ़ोगी तो बीड़ी कौन बनाएगा. लेकिन मेरी ज़िद और स्कूल की दूसरी छात्राओं और शिक्षकों के समझने पर वे मान गए.’ रेखा पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है.
अब पुरुलिया जिले की यह तीन युवितयां इलाके में मिसाल बन गई हैं. इन तीनों ने सिर्फ अपना बाल विवाह रोका, बल्कि जिले की कई दूसरी युवतियों को भी घरवालों की मर्जी के अनुसार कम उम्र में शादी करने से रोक दिया. अब ऐसी 35 लड़कियां चाइल्ड एक्टीविस्ट इनिशिएटिव (सीएआई) के तौर पर काम कर रही हैं. यह सब गांव-गांव घूम कर लड़कियों को बाल विवाह से इंकार करने के लिए तैयार कर रही हैं. इनकी कोशिशों की वजह से इलाके में दर्जनों बाल विवाह रोके जा चुके हैं.शिक्षा की व्यवस्था नहीं होने और गरीबी के चलते पुरुलिया जिले के कई हिस्सों में बाल विवाह की प्रथा अब भी कायम है. पुरुलिया के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू कहते हैं कि ‘किसी ने भी इन लड़कियों को बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाने की सलाह नहीं दी थी. इन लोगों ने खुद ही एकजुट होकर गांव-गांव जाकर ऐसा करने का फैसला किया था.’ इन लड़कियों को हौसले से कुंडू भी अचरज में हैं. वे कहते हैं कि ‘पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए इन लड़कियों के लिए कच्ची उम्र में विवाह से इंकार करना और अपने हक के लिए आवाज उठाना बेहद मुश्किल है.’
इन तीनों लड़कियों ने सरकारी अधिकारियों की सहायता से अब तक जिले में 35 लड़कियों का कच्ची उम्र में विवाह रोक कर स्कूलों में उनका दाखिला कराने में सहायता की है. मजदूरी और बाल विवाह से छुटकारा मिलने के बाद अब इन युवतियों की आंखों में सुनहरे सपने उभरने लगे हैं. अफ़साना बताती है कि वह पढ़-लिख कर डाक्टर बनना चाहती है.
शुरू से ही इस मामले में सरकारी स्तर पर इन युवतियों को हर तरह की सहायता देने वाले पुरुलिया के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू कहते हैं, ‘इन युवतियों की पहल से होने वाला बदलाव नजर आने लगा है. कल तक जो लोग बाल विवाह के पक्षधर थे, अब वही अपनी बेटियों को दोबारा स्कूल भेजने की पहल कर रहे हैं.’ वे कहते हैं कि जिले में यह अभियान अब एक आंदोलन में बदल चुका है.
इन युवतियों के हौसलों की वजह से इस पिछड़े इलाके में साक्षरता की एक नई सुबह अंगड़ाई लेने लगी है.