Thursday, January 19, 2012

संकल्प से सावरी जिंदगी


भारत डोगरा
बारां (राजस्थान)

वर्ष 1982 में जब तीन युवाओं ने अपने क्षेत्रा के सबसे निर्धन व अभावग्रस्त समुदाय की सेवा के लिए उनके ही गांव में बसने का निर्णय लिया तो उनके पास केवल आदर्श ही थे, संसाधन कुछ भी नहीं थे। उस समय उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन यह छोटा सा प्रयास इस समुदाय के लिए उम्मीद की सबसे बड़ी किरण बन जाएगा। पर 29 वर्ष के निष्ठावान कार्य का परिणाम यह है कि आज वास्तव में ऐसा हो सका है।
तीन युवाओं मोतीलाल, महेश बिंदल, और नीलू द्वारा आरंभ की गई संस्था संकल्प आज बारां जिले के सहरिया समुदाय को जागरुक और सशक्त करने के कापफी सपफल प्रयासों के लिए चर्चित है। शाहबाद व किशनगंज तहसीलों में बसे सहरिया निरंतर शोषण का शिकार होते रहे पर आज वे बेहतर जिंदगी की नई राहें तलाशने लगे हैं।
अपनी नौकरी या पढ़ाई करते समय इन युवाओं में एक बेचैनी थी कि बस यहीं तक हमारी सोच नहीं सिमटनी चाहिए, हमें जीवन की इससे व्यापक सार्थकता तलाशनी चाहिए। कुछ समय तक वे अपनी नौकरी या पढ़ाई के साथ ही कोटा व जयपुर की दलित बस्तियों में शिक्षा कार्य करते रहे। यह सपफल रहा पर इससे कुछ और अधिक सार्थक करने की चाह बनी रही। अतः वर्ष 1982 में अपनी नौकरी या कालेज की पढ़ाई छोड़कर इन तीनों युवाओं ने सबसे निर्धन व अभावग्रस्त लोगों के लिए पूर्णकालीन कार्य करने का निर्णय ले लिया। अनुभव बहुत कम था, आर्थिक संसाधन थे ही नहीं, पर पिफर भी निश्चय में दृढ़ता थी।
उन्होंने सबसे पहला कार्य यह किया कि मोटरसाईकल पर राजस्थान के कुछ सबसे पिछड़े इलाकों की यात्रा के लिए निकल पड़े। इन स्थानों पर जाकर यहां निर्धन समुदायों के बीच कार्य कर रही संस्थाओं व संगठनों के कार्यकर्त्ताओं से बातचीत की। कापफी घूमने व सोचने-विचारने के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि शाहबाद व किशनगंज तहसीलों में बसे सहरिया आदिवासियों के बीच ही उन्हें कार्य करना है, यहीं उनकी सेवाओं की सबसे अधिक जरूरत है।
कार्य आरंभ करने के लिए कुछ न्यूनतम धन तो चाहिए था। इन युवाओं ने इसके लिए एक सहज उपाय निकाला। उन्होंने ऐसे 50 मित्रों की सूची बनाई जिनसे उम्मीद की जा सकती थी कि इस प्रयास में सहयोग के लिए वे प्रति माह 20 रुपए का चंदा भेजेंगे। इस तरह उन्होंने प्रतिमाह लगभग 900 रुपए एकत्रा करने की व्यवस्था कर ली। उन्होंने दस रुपए प्रति महीने के किराए पर एक कमरा मामोनी गांव में ले लिया। यही आरंभिक कार्यालय बना व यही आवास बना। इस प्रयास की समर्थक जानी-मानी लेखिका लवलीन ने सुझाव दिया कि इस नए संगठन का नाम ‘संकल्प’ रखा जाए। इस सुझाव को तुरंत स्वीकार कर लिया गया।
मामोनी व आसपास के सहरिया बहुल क्षेत्रा में कुछ शिक्षा का कार्य आरंभ किया गया जिसमें नीलू का अधिक योगदान रहा। शीघ्र ही संकल्प का अधिक प्रयास लघु वन उपज से सहरिया समुदाय के लोगों की आय बढ़ाने पर अधिक केन्द्रित होने लगा। वे वन से गोंद, महुआ, चिरौंजी, शहद, औषधियां आदि एकत्रा करते थे व यह उनकी आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत था। सरकार ने उन्हें लघु वन उपज की उचित कीमत दिलवाने के लिए सहकारी समितियों पर आधारित व्यवस्था खड़ी तो कर दी थी पर हकीकत में कुछ धनी व्यापारी इस व्यवस्था का दुरुपयोग अपने लिए मोटा मुनापफा कमाने के लिए कर रहे थे।
व्यापारियों की गठजोड़ में दखल देकर संकल्प ने उनके सुरक्षित मोटे मुनापफे को चुनौती दी व वास्तविक वन उपज एकत्रा करने वालों को बेहतर कीमत मिलने का आधार तैयार करने का प्रयास किया। पहले तो इन व्यापारियों ने संकल्प को भी आर्थिक प्रलोभन देने का प्रयास किया पर जब इस पर संकल्प ने कोई ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने संकल्प के सदस्यों के विरु( हिंसा की धमकी दी। पर संकल्प अपने लक्ष्य से नहीं हटा व वन उपज एकत्रा करने वालों के लिए बेहतर कीमत सुनिश्चित करवा कर ही दम लिया।
पर शीघ्र ही यह स्पष्ट होने लगा कि लघु वन उपज से आय बढ़ाने के प्रयासों के बीच इससे भी महत्त्वपूर्ण एक मुद्दा पीछे छूट रहा था। लघु वन उपज आधारित आजीविका बने रहने के लिए यह जरूरी है जिन पेड़ों से यह वन-उपज मिलती है वे ठीक हालत में रहें।
अतः वन उपज प्राप्ति के साथ वनों को नया जीवन देने की ओर संकल्प ने ध्यान दिया। इन दिनों पफारेस्ट इन्क्लोयर या वन घेरबाड़ के कार्य से सहरिया समुदाय में कापफी उम्मीद है। इस सोच को तैयार करने में संकल्प ने बहुत मेहनत की। संकल्प ने स्वयं इस परियोजना पर छः-सात जगह कार्य किया व अन्य स्थानों पर इस बारे में जागृति पफैलाई। इस परियोजना के अन्तर्गत लगभग 100 स्थानों पर ऐसे वनभूमि के प्लाट लिए गए हैं जहां वन कापफी उजड़ी स्थिति में हैं। वनों को नया जीवन देने, नए पेड़-पौधे लगाने, प्लाट की सीमा पर पत्थरों की दीवार बनाने, यहां जल व मिट्टðी संरक्षण कार्य करने की जिम्मेदारी सहरिया व अन्य शोषित समुदायों को दी जा रही हैं। इसके बदले में उन्हें मजदूरी मिलेगी। इसके अतिरिक्त वह निरंतर वन की रक्षा व निगरानी के लिए स्वैच्छिक सेवाएं भी उपलब्ध करवाएंगे। उन्हें इन पेड़-पौधों से लघु वन उपज प्राप्त करने का पूरा हक प्राप्त होगा। इस तरह अल्पकालीन रोजगार के साथ दीर्घकालीन स्तर पर लघु वन उपज से अधिक व्यापक व टिकाऊ आजीविका मिलने की संभावना है।
इस बीच दूर-दूर की सहरिया बस्तियों में शिक्षा के प्रसार के कुछ नए व बेहतर अवसर उपलब्ध हो रहे थे। सहरियों में, विशेषकर महिलाओं में साक्षरता दर बहुत कम थी व दूरदराज के कुछ गांवों में सहरिया महिलाओं की साक्षरता नगण्य ही थी। इन गांवों में सरकारी स्कूल नाममात्रा को ही थे क्योंकि प्रायः अध्यापक यहां पहंुचते ही नहीं थे।
इस स्थिति में इन गांवों में साक्षरता सुधारने में ‘शिक्षाकर्मी’ प्रोजेक्ट की सहायता से ‘संकल्प’ ने सराहनीय कार्य किया। इस परियोजना के अन्तर्गत इन गांवों में ऐसे स्थानीय युवा अध्यापक के रूप में चुने गए जिन्होंने चाहे कम कक्षाएं पास की थीं पर जो अपने गांव में शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए बहुत उत्साहित थे। मेहनत और निष्ठा की उनमें कमी नहीं थी। इन अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया गया जिससे उन्होंने शिक्षा को एक सहज व प्रेरक अनुभव बनाने के बारे में नई सोच से बहुत कुछ सीखा। पिफर स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इस समझ का उन्होंने अपने गांवों में प्रयोग किया। प्रायः गांवों में शिक्षा स्थल में स्थान की कमी होती थी और कई स्तरों के विद्यार्थियों के लिए अध्यापक भी एक होता था। इन कठिनाईयों में विभिन्न शिक्षा स्तर के आधार पर विद्यार्थियों के ग्रुप बनाकर व वरिष्ठ विद्यार्थियों का भी शिक्षा प्रसार में रचनात्मक उपयोग कर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शिक्षा कार्य की प्रगति अच्छी रखी गई।
अनेक गांवों में देखा गया कि स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति तेजी से बढ़ रही है व बालिकाएं भी अच्छी संख्या में आ रही हैं। जो बच्चे स्कूल के सामान्य समय के दौरान किसी कारण से पढ़ने नहीं आ सकते थे उनकी जरूरतों के अनुसार विशेष समय की कक्षाएं आरंभ की गई व कुछ रात्रि शालाएं भी आरंभ की गई। व्यस्क साक्षरता का कार्यक्रम भी साथ-साथ चला। नई व रोचक शिक्षा में कुछ बच्चों की रुचि इतनी बढ़ गई थी कि वे स्कूल से लौटने के बाद कोशिश करते थे कि उनके माता-पिता के लिए चल रहे साक्षरता प्रयास में भी उन्हें बैठने का मौका मिल जाए।
निष्ठा व लगन से चले इस अभियान का परिणाम शीघ्र ही सहरिया समुदाय की तेजी से बढ़ती साक्षरता में नजर आने लगा। कई सहरिया युवाओं को सरकारी अध्यापकों के रूप में स्थाई रोजगार भी मिलने लगा। किन्तु प्रोत्साहन मिलने के स्थान पर इस कार्य में कई अवरोध पैदा किए जाने लगे। शिक्षा क्षेत्रा में यह अधिकांश प्रगति चर्चित लोक जुम्बिश परियोजना के दौरान हुई थी पर अब इससे जुड़े संस्थानों, कार्यकर्त्ताओं के लिए कठिनाईयां पैदा की जाने लगी। संकल्प के भी आर्थिक संसाधन रोक लिए गए। इस कारण कुछ समय तक संकल्प को बहुत आर्थिक दिक्कतों के दौर से गुजरना पड़ा। इस कठिन वक्त में जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता बंकर राय ने स्थिति संभालने में बहुत सहायता की।
संकल्प के दो संस्थापक सदस्यों महेश व नीलू के लिए पहले जैसे पूरा समय देना कठिन हो रहा था पर साथ ही कई नए सदस्यों की मेहनत और निष्ठा से बेहद कठिन स्थितियों से संकल्प उभरने लगा था। विशेषकर महिलाओं के संगठन व उनके समूहों के संगठन में चारुमित्रा मेहारू की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रही।
धीरे-धीरे संकल्प में वैकल्पिक ऊर्जा ;विशेषकर सौर व बायो गैसद्ध, प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग, कई तरह की दस्तकारी व तकनीकी शिक्षा के प्रशिक्षण की शुरुआत हुई। इस नए परियोजना कार्यक्रम को आरंभ करने में सामाजिक कार्य व अनुसंधान केन्द्र, तिलोनिया से बहुत सहयोग मिला। इन विभिन्न कार्यों के लिए मामोनी में एक कैम्पस विकसित हुआ।
यहां की कई सहरिया महिलाओं ने तिलोनिया में ;जिला अजमेरद्ध सौर ऊर्जा का प्रशिक्षण किया व लौटकर कई गांवों में सौर प्रकाश की व्यवस्था की। बेयरपफुट सौर इंजीनियरों की सहरिया लड़कियों/महिलाओं की इस टीम को एक प्रेरणा-स्रोत की तरह देखा जाने लगा। इन दिनों अनेक नए सौर ऊर्जा सिस्टम लगाने की तैयारी चल रही है।
संकल्प के मामोनी स्थित परिसर में ऐसे सहरिया छात्रों के लिए एक आवसीय स्कूल भी आरंभ किया गया है जो पफेल घोषित होने के कारण सरकारी आवासीय स्कूलों में अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाते हैं। यहां इन छात्रों की प्रगति संतोषजनक रही है। लगभग दस वर्षों से संकल्प किशोरों की शिक्षा के एक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट ‘दूसरा दशक’ से जुड़ा रहा है। इस प्रोजेक्ट के अन्तर्गत 10 से 20 वर्ष की आयु के किशोरों/यूवाओं के लिए तीन महीनों के आवासीय कैंप लगाए जाते हैं। शिक्षा-प्रशिक्षण के साथ एक बड़ी बात यह होती है कि नई पीढ़ी सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जिम्मेदार बने। इस तरह युवाओं की टीम को सामाजिक कार्य से जोड़ने में सहायता मिली व युवा शक्ति संगठन की स्थापना की गई जो अब नई जिम्मेदारियां संभालने में सक्षम हैं।
स्थानीय स्तर पर बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ संकल्प ने कई राष्ट्रीय स्तर के अभियानों में भी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। सूचना के जन-अधिकार, मनरेगा के रोजगार गारंटी कानून व खाद्य व पोषण कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वन के अभियान में संकल्प की निष्ठावान भागेदारी नजर आई।
वर्ष 2002 के भीषण सूखे ने संकल्प के लिए नई चुनौतियां उपस्थित की। सहरिया समुदाय व अन्य निर्धन परिवारों में भूख व कुपोषण की समस्या इतनी विकट हो गई कि भूख से मौत के कई समाचार एक के बाद एक मिलने लगे। इन कठिन परिस्थितियों में संकल्प ने अपनी पूरी ताकत भूख के विरु( एक सशक्त अभियान चलाने में लगा दी। इस अभियान में राहत कार्य को अधिक व्यापक व बेहतर बनाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने, गरीब परिवारों को विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत सस्ता व निशुल्क अनाज देने व आंगनवाड़ी जैसे पोषण व स्वास्थ्य कार्यक्रमों को मजबूत करने पर जोर दिया गया। इस अभियान में मीडिया का भी अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ। सरकार ने खाद्य व राहत व्यवस्था सुधारने के जो वायदे किए उनका गांव व बस्ती स्तर पर मूल्यांकन कर सही स्थिति सरकार व लोगों के सामने रखी गई।
कुल मिलाकर सरकार ने भी सार्थक भूमिका निभाई व कुछ ही महीनों में अनेक अभावग्रस्त बस्तियों में खाद्य स्थिति बेहतर होने के समाचार मिले। संकल्प ने स्वयं भी लगभग 40 स्थानों पर पोषण केन्द्र आरंभ किए। एक बेहद कठिन समय में कुछ सबसे जरूरतमंद परिवारों की पोषण संबंधी आवश्यकताएं पूरी करने में इनकी सार्थक भूमिका रही।
भीषण सूखे की स्थिति में अनेक परिवारों को भूख से बचाने के कार्य में संकल्प को बहुत संतोष तो मिला, पर साथ ही यह अहसास भी हुआ कि अल्पकालीन राहत से आगे जाकर सहरिया समुदाय व अन्य सबसे जरूरतमंद परिवारों की आजीविका का आधार और मजबूत करना है। इस अहसास के साथ ही संकल्प ने इन समुदायों व विशेषकर सहरिया समुदाय के वन व भूमि अधिकारों की ओर अधिक ध्यान केन्द्रित करना आरंभ किया।
कुछ दशक पहले तक इस क्षेत्रा में पर्याप्त खाली भूमि की जो स्थिति थी उसमें सहरिया मनचाही भूमि पर खेती कर सकते थे, और इस तरह घुमंतू जीवन बिता सकते थे। पर समय बदलने के साथ भूमि विभिन्न असरदार परिवारों के हाथ में पहंुचती रही जबकि शिक्षा व कानूनी जानकारी से वंचित सहरिया समुदाय के अधिकार सिमटते गए। एक समय ऐसा भी आया कि जिस भूमि को वे मनचाहे ढंग से जोतते-बोते थे उसी पर उनकी स्थिति बंधुवा मजदूरों जैसी होने लगी।
संकल्प ने सहरिया समुदाय के भूमि-अधिकारों के लिए निरंतर आवाज उठाई। वन-अधिकार कानून बनने से नए अवसर उत्पन्न हुए तो वन-नियमन समितियों में मौजूद संकल्प के सदस्यों ने भी कापफी सक्रिय भूमिका निभाई। कई कठिनाईयां थीं पर पिफर भी संकल्प के क्षेत्रा में लगभग 700 सहरिया परिवारों के भूमि अधिकार सुनिश्चित हो गए।
इन बढ़ती जिम्मेदारियों को संभालने में सहरिया महिलाओं की बढ़ती जागृति भी उपयोगी सि( हो रही है। पहले महिलाओं के जो समूह बनाए गए थे उन्हें अब जागृत महिला संगठन के माध्यम से और मजबूती मिली है। कई स्थानों पर अन्याय व उत्पीड़न का विरोध करने के लिए महिलाएं आगे आ रही हैं। एक बहुत अच्छी मिसाल कायम रखते हुए संकल्प ने जागृत महिला संगठन को एक स्वतंत्रा संगठन के रूप में स्थापित होने में सहायता दी व अपनी कई परिसंपत्तियां उसे सौंपी।
अब सहरिया समुदाय, अन्य उपेक्षित-शोषित समुदायों व विशेषकर महिलाओं में अन्याय से लड़ने के लिए नई जागृति उत्पन्न हो रही है। यह नई जागृति ही वन व भूमि अधिकारों के साथ टिकाऊ विकास का आधार तैयार करने में सबसे मददगार सि( होगी। 29 वर्ष पहले 10 रुपए मासिक किराए के कार्यालय से आरंभ हुई एक छोटी से पहल आज अपनी ईमानदारी और निष्ठा के बल पर यहां तक पंहुची है कि क्षेत्रा के सहरिया समुदाय व अन्य शोषित-उपेक्षित तबको के लिए नई उम्मीद की एक किरण बन गई।


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