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'पच्चीस साल पहले जिस झालावाड में अफीम के पच्चीस हजार पट्टे थे, आज यह संख्या छह सो पहुच गयी है'
झालावाड जिला स्मैक तस्करी के लिया बदनामी झेल रहा है। जिले में खास कर भवानीमंडी कसबे में इस नशे का कारोबार सिमटता जा रहा है। जिले में स्मैक की जननी अफीम की फसल का रकबा नाम मात्र रहा गया है। इसकी वजह राजनीतिक नैतिक हालात रहे हो या किसानो का दुर्भाग्य लेकिन अब इस फसल का रकबा सीमावर्ती मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की ऑर खिसक गया है। यहाँ अफीम का उत्पादन झालावाड जिले से कई गुना अधिक है।
भवानीमंडी क्षेत्र में कुछ वर्षो पूर्व तक हर गाँव के दर्जनों खेतों में अफीम की फसल लहलहाया करती थी। पर अब ऐसा नजारा नहीं है। अब दूसरी फसल लहलहा रही है। मौसम का यह वह समय है जब जिस गाँव में चले जाते वहां के खेतों में अफीम की सौंधी सौंधी महक आती थी। किसान अपने पूरे परिवार सहित अफीम की फसल की देखरेख में व्यस्त रहता था । उसकी आर्थिक हालत को भी फसल से संबल मिलता था। लेकिन यहाँ से होने वाली अफीम व स्मैक की तस्करी तथा केंद्र सरकार की सख्त निति के चलते किसानों से अफीम के पट्टे छीनते गये और किसानों के हाथ से यह नकदी फसल जाती रही।
लगातार घटते जल स्तर से फसल के उत्पादन में असर पड़ा। मादक पदार्थों के बाज़ार में इसकी कीमतों में लगातार बढोतरी हुई जबकि सरकारी खरीद के दाम उसके अनुपात में कम बढे। भावों के इस अंतर से किसान अपना माल चोरी छुपे इन तस्करों को देने पर आकर्षित होने लगा । आर्थिक हालात का मारा किसान इनकी ओर आकर्षित होकर माल सरकार को देने के बजाये इनको देने लगा। कई बार मौसम की मार से भी उत्पादन पर असर पड़ा। लेकिन सरकार ने लेवी में ली जाने वाली अफीम में कई कटौती नहीं की जिससे सरकार को कम अफीम देने वाले किसानों के साल दर साल पट्टे निरस्त होते रहे। आज हालात यह है कि किसानों को समृद्ध करने वाली यह फसल उनके हाथ से निकल गई। अब हालात यह है कि दर्जनों गावों में ढूढने के बाद एक दो खेत में ही अफीम कि फसल मिलेगी।
झालरापाटन पंचायत समिति क्षेत्र के सरपंच संघ अध्यक्ष चंदर सिंह राणा कभी अफीम उत्पादक काश्तकार थे । राणा का कहना है कि दो चार बीघा जमीन वाले अफीम उत्पादक किसान जो इस अफीम कि फसल के ऊपर ही साल भर अपना घर चला लिया करते थे उनके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। इनको पुन: पट्टे मिले इसके लिए सैकड़ो किसानों के साथ दिल्ली में राहुल गाँधी, मुकुल वासनिक, सम्बंधित मंत्रियो को ज्ञापन दिया लेकिन दुर्भाग्य ही है कि हमारे लाख प्रयासों के बावजूद प्रति वर्ष अफीम के पट्टे कम होते जा रहे है।
अफीम कि खेती छोड़ चुके किसान कहते हैं कि करीब 25 वर्ष पूर्व झालावाड जिले में 25 हजार के लगभग अफीम पट्टे किसानों के पास थे। इसकी देखरेख के लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के उत्पादन पर निगाह रखने वाले तीन कार्यालय भवानीमंडी, झालावाड व इकलेरा में संचालित होते थे। जिनमे लम्बा चौड़ा स्टाफ था लेकिन पट्टे टूटने से यह वर्ष दर वर्ष बंद होते गये।
क्षेत्र के किसानों को संबल देने वाली नकदी फसल हाथ से निकलने तथा किसानों कि इस दुखती नब्ज को समझते हुए गत लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रमुख दलों ने इसे मुद्दा बनया था। किसानों को अधिक से अधिक अफीम के पट्टे दिलाने का वादा किया थे लेकिन अब सारे वायदे हवा हो चुके हैं ।
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